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________________ (२२) (६६) नेमि नवल देखें चल रही । लहैं मनुष भवको कल' री ॥ टेक ॥ देखनि जात जात दुख तिनको भान यथा तम दल दल री । जिन उरनाम वसत है जिनके, तिनको भय नहिं जल थल री ॥ नेमि. ॥ १ ॥ प्रभु के रूप अनूपम ऊपर, कोट काम कीजे बल री । समोसरन की अद्भुत शोभा, नाचत शक्र सची' रल री ॥ नेमि ॥ २ ॥ भोर उठत पूजन पद प्रभु के पातक भजन सकल टल री । ‘द्यानत’ सरन गहौ' मन ! ताकी, जै हैं भवबंधन गल री ॥ नेमि ॥ ३ ॥ (६७) सखि ! पूजौं मन वच श्री जिनन्द, चित चकोर सुखकरन इंद ॥ टेक ॥ कुमति कुमुदिनी हरनसूर, विघन सघन वन दहन सूर ॥ भवि ॥ १ ॥ पाप उरग' प्रभु नाम मोर, मोह महातम दलन भोर ॥ भव ॥२ ॥ दुख - दालिद - हर अनघ रैन,° 'द्यानत' प्रभु दें परम चैन ॥ भवि ॥ ३ ॥ (६८) फूली वसन्त जहँ आदी सुर शिवपुर गये ॥ टेक ॥ भारतभूप बहत्तर जिनगृह कनकमयी" सब निरमये १२ ॥ फू. ॥ १ ॥ तीन चौबीस रतनमय प्रतिमा, अंग रंग जे जे भये 1 सिद्ध समान सीस सम सबके, अद्भुत शोभा परिनये १३ ॥ २ ॥ वाल आदि आठ कोड़ मुनि सवनि मुकति सह अनुभये ५ तीन अठाई कागनि खग मिल, गावैं गीत नये नये ॥३॥ वसु ६ योजन वसु पैड़ी ( ? ) गंगा, फिरी बहुत सुर । 'द्यानत' सो कैलास नमौं हौं, गुन कापै१७ जा बरनये" ॥४॥ १४ १५ (६९) रे मन भज-भज दीनदयाल ॥ जाके नाम लेत इक छिनमैं, १९ कटैं कोट अघजाल परम ब्रह्म परमेश्वर स्वामी, देखें होत Jain Education International टेक ॥ .२० रे ॥ रे मन. ॥ १ ॥ 1 निहाल ' १. चैन २. दर्शन से ३. सूर्य ४. अंधकार नष्ट करना ५. इन्द्राणी ६. ग्रहण करो ७. उसकी ८. सर्प ९. मयूर १०. रात्रि ११. स्वर्णमयी १२. बनाये १३. प्राप्त की १४. साढ़े तीन १५. अनुभव किया १६. आढ १७. किससे १८. वर्णन करना १९. क्षणभर में २०. पाप समूह २१. धन्य । २१ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003995
Book TitleAdhyatma Pad Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchedilal Jain, Tarachand Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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