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कवि ने उक्त ग्रन्थ में संग्रहीत अपने एकमात्र पद (सं०५५१) में संसार की अस्थिरता, अनित्यता, नश्वरता और क्षणिकता का दिग्दर्शन करते हुए बतलाया है कि जीवन में मात्र धर्म-साधन ही एक ऐसा शाश्वत सत्य है जो अजर, अमर है और वही प्राणी का उद्धार कर सकता है।
कवि कुमरेश का जन्म उत्तरप्रदेश के एटा जिले के विलराम नामक ग्राम में लाला झुन्नीलाल के यहाँ हुआ था। उनकी रचनाओं को ध्यान में रखते हुए उनका जन्म लगभग सन् १९१० ई० के आस-पास रहा होगा। कवि भूरामल
कवि भूरामल का राजस्थानी, संस्कृत-प्रकृत और हिन्दी भाषा पर समान अधिकार था। इनके तीन पद प्रस्तुत ग्रन्थ में संग्रहीत हैं, जो खड़ी बोली में रचित है। इन पर राजस्थानी भाषा का प्रभाव भी परिलक्षित होता है।
इन्होंने अपने पदों में वीर प्रभु की आराधना की है और अपने उत्थान हेतु उनकी शरण में जाने की सलाह दी है और कहा है कि समस्त विकारी भावों का त्याग कर मनुष्य को चाहिए कि वे वीर प्रभु की भक्ति में लीन होकर आत्म-कल्याण करे।
कवि ने अपने पदों में बड़ी ही विनय पूर्वक अपनी निरहंकारिता और दीनता को प्रकट किया है तथा वीर प्रभु की महानता और गुणों का सरस वर्णन किया हैं। कवि का समय वर्तमान सदी का मध्यकाल रहा है। कवि शिवराम
कवि शिवराम के पदों का अध्ययन करने से प्रतीत होता है ये अच्छे शायर थे और गज़ल तथा शायरी की शैली में आध्यात्मिक एवं भक्तिपरक पदों की रचना किया करते थे।
प्रस्तुत ग्रन्थ में उनके तीन पद संग्रहीत हैं। (पद १८६, ४३८, ५५०) उन्होंने इनमें चेतन को सम्बोधित करते हुए, उपलब्ध मनुष्य-जन्म आत्म-चिन्तन द्वारा सार्थक बना लेने की शिक्षा दी है। यथा -
"समझ कर देख ले चेतन जगत बादल की छाया है।" कवि शिवराम २०वीं शताब्दी के मध्यकालीन कवि थे और अविभाजित पंजाब के निवासी थे। वे सम्भवतः प्रज्ञाचक्षु थे।
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