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________________ ( २२५ ) यौं न लांगे ३ तेई, पर पग झारते । पाय, रहे विभो धर्म ना संभार ॥ कौलों' धन खांगे कोऊ कहै फिरै पाँय नांगे कागे एतै पै अयाने गरबा धिक है समझ ऐसी ' (५९४) दीसत १४ को पुत्र को वियोग आयौ, नारी१२ काल १३ मग में यान १५ ही पै पनही १६ न पग में देखो भर जोवन में पुत्र तैसे " ही निहारी" निज जे-जे पुण्यवान जीव रंक भये फिरैं तेऊ एते पै अभाग १७ धन जीतव" सौ धरे राग १९ होय न विराग - जानै २० आंखिन विलोकि२१ अंध सूसे की अंधेरी करे, ऐसे राज रोग को इलाज कहा जग में ॥ रहूंगो अलग मैं कवित्त Jain Education International है (५९५) सवैया " २७ || छेम निवास छिमा २२ धुवनी २३ बिन क्रोध पिशाच २४ उरै२५ न टरैगो २६, कोमल भाव उपाव बिना, यह मान महामद कौन हरेगौ २८ आर्जव सार कुठार २९ बिना छलबेल निकंदन कौन करेगौ । " तोष ३२ ३२ शिरोमनि मंत्र पढ़े बिन, लोभ फणी ३३ विष क्यो उतरेगौ३४ कवि द्यानतराय (५९६) रे जिय क्रोध काहे करे ॥ टेक ॥ देख कैं अविवेकी ३५ प्रानी, क्यों विवेक न धरै ॥रे जि. ॥ १ ॥ जिसे ३६ जैसी उदय आवै सो क्रिया आचरै३७ । १. कब तक २. खायेंगे ३. भूखे ४ नंगे पैर ५. दूसरे के पैर झाड़ते ६. इतने पर ७. अज्ञानी ८. घमंडी ९. सम्पत्ति पाकर १०.वैसे ११.देखी १२. अपनी स्त्री १३. मृत्यु के मार्ग में १४. दिखाई देता है १५. सवारी पर ही १६. जूता १७. अभागा १८. धन और जीवन से १९. राग, प्रेम करते है २०. समझे २१. देखकर २२. क्षमा २३. धूनी २४. भूत २५. हृदय से २६. टलेगा नहीं २७. उपाय २८. हरण करेगा २९. परसा ३०. कपट रूपी लता ३१. नष्ट करना ३२. संतोष ३३. सर्प ३४. कैसे उतरेगा ३५. मूर्ख ३६. जिसके ३७. आचरण करता है। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003995
Book TitleAdhyatma Pad Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchedilal Jain, Tarachand Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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