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________________ (२२०) पुरुष प्रमान प्रमान बचन तिस कलपित' जान अनेरे । राग दोष दूषित तिन वायकर सांचै हैं हित तेरे ॥ २ ॥ देव अदोष धर्म हिंसा बिन लोभ बिना गुरु घेरे । आदि अन्त अविरोधी आगम चार रतन जहँ येरे ॥ ३ ।। जगत भर्यो पाखंड परख बिन खाइ खता बहु तेरे । 'भूधर' कोरि निज सुबुधि कसौटी धर्म कनक कसि लेरे ॥ ४ ॥ (५८२) कवित्तढईसी सराय काय पंथी . जीव वस्यो आय, रत्नत्रय निधि जापै मोख जाकौ° घर है । मिथ्या निशिकारी जहां मोहरे अंधकार भारी, कामादिक तस्कर१३ समूहन को घर है ॥ सोवै जो४ अचेत सोई, खोवै५ निज संपदा को, वहाँ गुरु पाहरू१६ पुकारै दया कर है ॥ गाफिल न हूजै भ्रात ऐसी है अंधेरी रात, "जाग रे बटोही७ यहां चोरन को डर है" ।। कवि द्यानतराय (५८३) राग-मल्हार काहे को सोचत अति भारी, रे मन ॥टेक ॥ पूरव ८ करमन की थिति बांधी, सो तो टरत न टारी ॥ काहे. ॥१॥ सब दरबनि° की तीन काल की, विधि न्यारी की न्यारी । केवल ज्ञान विषै प्रतिभासी,२१ सो२२ सो है है सारी ॥ काहे. ॥ २ ॥ सोच किये बहु बंध बढ़त है, उपजत है दुख ख्वारी२२ । चिंता चिता समान बखानी, बुद्धि करत है कारी ॥काहे. ॥ ३ ॥ रोग सोग५ उपजत चिन्ता तै, कहो कौन गनवारी । १. कल्पना किया हुआ २. झूठ ३. कहने वाले ४. धोखा ५. सुबुद्धि रूपी कसौटी ६. धर्मरूपी सोना ७. कस लो ८. ढह जायेगी ९. मोक्ष १०. जिसका ११. मिथ्या रूपी काली रात १२. मोह रूपी अंधकार १३. चोर १४. जो अचेत होकर सोता १५. अपनी संपत्ति खोता है १६. पहरेदार १७. राहगीर १८. पूर्व कर्म १९. टालने से भी नहीं टलता २०. द्रव्यों की २१. प्रतिभासित हुआ २२. वह सब होगा २३. बरबादी २४. काली २५. शोक २६. गुणवाली । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003995
Book TitleAdhyatma Pad Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchedilal Jain, Tarachand Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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