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________________ (२१५) धरम गुमावन' पावै इष्ट दुखी हो विललावै ॥ परनारी' की प्रीत सबनन को दाग लगाने वारी है ॥२॥ चितवन वकसम फनी विषधरी विष की, बुझी कटारी है । लागै दूर चोट ओट फिर खून सुखावन हारी है । घायल हो कै हरीहर ब्रह्मा बुद्धि विसारी है । कठिन कटारी अजस की फांसी सज्जन ने परिहारी है ॥ ३ ॥ परवस दीन बनै जस खोवै ज्ञान ध्यान धन नाहि रहो जोवन छीजै बुद्धि बल रूप चतुर पन नाहिर है । धीरज साहस अरु उदारता सुविद धर्म मन नाहि रहै । एक शील बिन सुगुण सब दूर सूरपन नाहि रहै। कहै 'जिनेश्वर दास' सरबथा दुख समुद्र परनारी है ॥ ४ ॥ __कवि बुधमहाचन्द (पद ५७३-५७५) (५७३) सीता सती कहत है रावण सुन रे अभिमानी । तुम कुल काष्ट' भस्म के कारण हमे आगि आनी ॥ टेर ॥ कहा दिखावत हमको तेरी लंका रजधानी तेरा राज्य विभो हम दीसे २ जू जीर्णतृण समानी ॥सीता. ॥ १ ॥ शीलवंत पुरषन के दारिद सोहू सुखदानी ॥ शीलहीन तुमसे पापिन के सम्पत्ति दुखदानी ॥ सीता. ॥२॥ हमरे भरता३ रामचन्द्र देवर लक्ष्मण जानी महा बलवंत जगत में नामी तोसे नहीं छानी ॥ सीता. ॥३॥ चन्द्रनखा तेरी बहिन तास को पुत्र रहित ढानी । खरदूषण हति रंडा कीनी सोतें नहीं मानी ॥ सीता. ॥ ४ ॥ जो तूं कहै हम हैं विद्याधर चलत गगन पानी । काग कहा नहीं गगन चलत है सौ औगुन' खानी ॥ सीता ॥५॥ प्रतिनारायण नकभूमि'६ में कहती जिनवानी । 'बुधमहाचन्द्र' कहत हैं भावी मिटै न मेटानी ॥ सीता ॥६॥ १.गुमाने वाली २.रोता है ३.पर स्त्री ४.कलंक लगाने वाली ५.बगुला के समान ६.विषधर सर्प ७.सुखाने वाली ८.अयश ९.नष्ट होता १०.वीरता ११.कुलरूपी काठ १२.दिखाई देता १३.स्वामी, पति १४.विधवा १५.अवगुण की खान १६.नरक भूमि। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003995
Book TitleAdhyatma Pad Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchedilal Jain, Tarachand Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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