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(२१२) जिहिं पान किर्यै सुधिजात हिये, जननी जन जानत नार यही । मदिरा समआन निषिद्ध कहा, यह जान भले कुल' में न गही । धिक है उनको वह जीभ जलौ , जिनमूढ़न के मतलीन कही ॥
(५६४)
सवैया धनकारन पापनि प्रीत करै, नहि तोरत नेह जथा' तिनको लव चाखत नीचन की मुँह की शुचिता सब जाय छियै जिनको मद मांस बजारनि खाय सदा, अंधलै बिसनी न करें धिनकौ गनिका संग जे सठलीन भये, धिक है, धिक है, धिक है तिनको ।
(५६५)
सवैया ए विधि भूल भई तुम , समुझै न कहाँ कसतूरि बनाई । दीन, कुसंगन के तन मैं, तुन दैत धरै करुना किन आई ॥ क्यों न करी तिन जीभन जे, रस काव्य करें परकौं दुख दाई । साधु अनुग्रह दुर्जन दंड, दोऊ साधवे विसरी चतुराई ॥
कविन्त
(५६६) कानन५ वसै६ आन७ न गरीब जीव । प्रानन सो प्यारौ प्रान पूंजी जिस यहैं८ है ॥ कायर सुभाव धरै काहू सों न द्रोह करें । सबही सों डरे दांत लिये तृन रहे है ॥ काहू सौं न रोष° पुनि काहू पै न पोष१ चहैं, काहू के परोष२२ परदोष२३ नाहि कहै है । नेकु स्वाद सारिवे४ कों ऐसे मृग मारिवेकौं,, हा हा रे कठोर तेरो कैसे कर बहै६ है।
१.जिसको २.मां को स्त्री समझ बैठता है ३.अच्छे कुल के लोग ४.जल जाय ५.पापिनी ६.प्रेम ७.जिस प्रकार ८.ओंठ ९.व्यसनी १०.वेश्या ११.तुमसे १२.क्यो १३.दूसरे को १४.भूली १५.जंगल १६.रहता है १७.दूसरा १८.यही १९.दातों में घास दबाये २०.द्वेष २१.पोषण चाहता है २२.पड़ोस २३.दूसरे के दोष २४.सिद्ध करने को २५.मारने को २६.हाथ उठता है।
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