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________________ (१९७) एक एक इन्द्री तैं यह दुख सबकी कौन कहाई यह उपदेश करत है पंडित 'महाचन्द्र' सुख दाई | विषय. कवि दौलतराम । ॥६॥ (५२९) मत कीजो यारी, ये भोग भुजंग सम जानके ॥टेक ॥ भुजंग डसै इकबार नसत है, ये अनंत मृतुकारी। तृष्णा तृषा बढ़े इन सेये, ज्यों पीये जलखारी ॥ मत. ॥१॥ रोग वियोग शोक बनिता धन, समता-लता कुठारी । केहरि करि अरीन देख ज्यों, त्यों ये दे दुखभारी ॥ टेक. ॥ २ ॥ इनमें रचे देव तरु थाये,° पाये श्वध्र १ मुरारी २ । जे विरचे ३ ते सुरपति अरचे,१४ परचे सुख अधिकारी ॥ मत. ॥ ३ ॥ पराधीन छिन मांहि छीन है, पाप बन्ध कर नारी । इन्हें गिने सुख आक" मांहि तिन आमतनी बुध धारी ॥ मत. ॥ ४ ॥ मीन मतंग पतंग ,ग८ मृग,९ इन वश भय दुखारी। सेवत ज्यों किम्पाक ललित,° परिपाक समय दुखकारी ॥ मत. ॥ ५ ॥ सुरपति नरपति खगपति हूंकी, भोग आश न निवारी२२ । 'दौल' त्याग अब भज विराग सुख, ज्यों पावे शिवनारी२२ ॥ मत. ॥ ६ ॥ १६. संसार - असार कवि बुधजन (५३०) राग-सोरठ हमको कछू भय ना रे, जान लियो संसार ॥ हमको ॥ टेक ॥ जो निगोद में सोही मुझमैं, सोही मोख२५ मँझार । निश्चय भेद कछू भी नाहीं, भेद गिनै संसार ॥ १ ॥ परवश है आपा२६ विसारिक, रागदोष कौं धार । जीवन मरत अनादि कालौं यौँ ही है उरझार२७ ॥ २ ॥ १. दोस्ती २. सर्प ३. अनंत मृत्यु करने वाले ४. सेवन करने को ५. खारा जल ६. स्त्री ७. सिंह ८. हाथी ९. जंगल १०. हुये ११. नरक १२. कृष्ण १३. विरक्त हो गये १४. पूजा करते हैं १५. अकोआ १६. आम की १७. हाथी १८. भोरा १९. हिरण २०. सुन्दर २१. फल देने के समय २२. दूर करना २३. मोक्ष २४.कुछ २५.मोक्ष २६.आत्मस्वरूप भुलाकर २७.उलझना । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003995
Book TitleAdhyatma Pad Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchedilal Jain, Tarachand Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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