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________________ ( १९२ ) ज्ञान को फाग भाग वश आवै, लाख करो चतुराई । गुरु दीनदयाल कृपा करि 'दौलत' तोहि बताई 11 नहिं चित से विसराई II ज्ञानी. 118 11 (५१७) कवि बनारसीदास रंग भयो जिन द्वार चलो सखि खेलन होरी ॥ टेक ॥ सुमति सखि सब मिलकर आओ, कुमति न देऊ' निकार केशर चंदन और अरगजा, समता भाव धुपाय भयो. समता भाव धुपाय ॥ चलो सखि ॥ रंग दया मिठाई तप बहु मेवा सत ताँबूल' अष्ट कर्म की डोरि बंधी है ध्यान अग्नि सु जलाय ॥ ध्यान अग्नि सु जलाय चलो सखि || रंग भयो . गुरु के वचन मृदंग बजत हैं ज्ञान क्षमा डफ ' ताल । कहत ‘बनारसि' या होरी खेलो मुक्तिपुरी को राज मुक्तिपुरी को राज || चलो सखि ॥ रंग भयो. ॥ २ ॥ 11 ॥ ३ ॥ चवाय । (५१८) कवि कुंजीलाल राग पीलू ठेका दीपचंदी खेलत फाग' महामुनि वन में स्वातम रंग सदा सुख दाई ॥ टेक ॥ अष्ट कर्म की रचत होलिका, ध्यान धनंजय' ताहि जराई राग द्वेष मोहादिक कंटक भस्म किये चिर शांति उपाई " खेलत फाग महामुनि. .१२ मार्दव आर्जव, सत्यादिक मिल दया क्षमा संग होरी मचाई मन मृदंग तम्बूरा तन का, डुलन" डोरि" कसि तंग कराई खेलत फाग महामुनि. सुरति सरंगी की धुनि गाजै, १३ मधुर बचन बाजत शहनाई ज्ञान, गुलाल भाल पर सोहै, परम अहिंसा अबीर उड़ाई Jain Education International 1 ॥ ॥ १ ॥ For Personal & Private Use Only 11 ॥ १ ॥ 1 11 2 11 1 १. निकाल दो २. धूप देना ३. पान ४. चबाकर ५. डफली ६. होली ७. अपनी आत्मा ८. आग ९. जला दिया १०. उत्पन्न की ११. डोलना १२. रस्सी १३. गूंजना १४. मस्तक । 11 www.jainelibrary.org
SR No.003995
Book TitleAdhyatma Pad Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchedilal Jain, Tarachand Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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