________________
(१९०)
समता पिचकारी अति प्यारी भर जु चलावत चहुँ ओरी ॥ चेतन. ॥१॥ शुभ संवर सु अबीर आडंबर' लावत भर भर कर जोरी । उड़त गुलाल निर्जरा निर्भर, दुखदायक भवथिति होरी ॥ चेतन. ॥ २ ॥ परमानंद मृदंगादिक धुनि, विमल विराग भाव घोरी । 'भागचंद' दृग-ज्ञान-चरन भय परिनत अनुभव रंग बोरी ॥ चेतन. ॥ ३ ॥
कवि द्यानतराय
__ (५१३) चेतन खेलै होरी ॥ टेक॥ सत्ता भूमि छिमा बसन्त' में समता प्रान प्रिया संग गोरी ॥ चेतन. ॥ १ ॥ मन को माट प्रेम को पानी तामे करुणा केसर घोरी । ज्ञान ध्यान पिचकारी भरि भरि आपमें छौरै होरा होरी ॥ चेतन. ॥ २॥ गुरु के वदन मृदंग बजत है, नय दोनों डफ ताल टकोरी । संजम अतर विमल व्रत चोवा,२ भाव गुलाल भरै भर झोरी ॥ चेतन. ॥ ३ ॥ धरम मिठाई तप बहु मेवा, समरस आनंद अमल कटोरी । ‘द्यानत' सुमति कहै सखियन सों चिरजीवो यह जुग जोरी ॥ चेतन. ॥ ४ ॥
(५१४) आयो सहज वसन्त खेलें सब होरी होरा ॥ टेक ।। उत३ बुधि दया छिमा बहु ठाढी इत जिय रतन सजै गुनजोरी ॥ आयौ. ॥ १ ॥ ज्ञान ध्यान डफ ताल बजत है अनहद शब्द होत घनघोरा" ॥ धरम सुराग गुलाल उड़त है, समता रंग दुहुने घोरा ॥ आयो. ॥२ ।। परसन ८ उतर भरि पिचकारी, छोरत दोनों अरि करि° जोरा । इततै२९ कहै नारि तुम काकी,२२ उतसै कहै कौन को छोरा२३ ॥ आयो. ॥ ३ ॥ आठ काठ अनुभव पावक में जल बुझ शांत भई सब ओरा । 'द्यानत' शिव आनंद चन्द छवि देखें सज्जन नैन चकोरा ॥ आयो. ॥ ४ ॥
१. ढोंग २. सम्यक्दर्शन ज्ञान चारित्र ३. क्षमा रूपी वसन्त ४. बड़ी मटकी ५. उसमें ६. छोड़ता है ७. मुख ८. व्यवहार नय निश्चय नय ९. डफली १०. चोट ११. इत्र १२. चंदन १३. उधर १४. गुणों की जोड़ी १५. भयंकर १६. अच्छा राग १७. घोला १८. स्पर्श १९. छोड़ते हैं २०. जोर लगाकर २१. इधर को २२. किसकी २३. लड़का २४. अष्टकर्म ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org