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(१७८)
गज-गमनी' शशि-वदनी,२ तरुनी, मंगल गावत है सिगरी ॥ भाई. ॥ १ ॥ नाभिराय घर पुत्र भयो है, कियो है अजाचक' जाचक ॥ भाई. ॥ २ ॥ 'द्यानत' धन्य कूख मरुदेवी, सुर सेवत जाके पगरी ॥ भाई. ॥ ३ ॥
(४८४)
कवि दौलतराम चलि सखि देखन नाभिराय घर नाचत हरि नटवा ॥ टेक ॥ अद्भुत लाल मान शुभ लय युत चवत राण' पटवा ॥ टेक ॥ चलि. ॥ १ ॥ मनिमय नूपुरादि भूषन दुति, युत सुरंग पटवा । हरिकर नखन नखन पै सुरतिय पग फेरत कटवा" ॥ चलि. ॥ २ ॥ किन्नर कर धर वीन बजावत लावत लय झटवा२ । 'दौलत' ताहि लखें चख तृपते ३ सूझत शिव पटवा ॥ चलि. ॥ ३ ॥
(४८५)
बुध महाचन्द्र सिद्धारथ राजा दरबारै बजत बधाई रंग भरी हो॥ टेक ॥ त्रिसला देवी नै सुत जायो वर्द्धमान जिनराज वरी५ हो ।
कुण्डलपुर में घर द्वार होय रही आनंद घरी हो ॥ सिद्धारथ. ॥१॥ रत्नन की वर्षा को होते पन्द्रह मास भये सगरी हो । आज गगन दिश निरमल दीखत पुष्ट बृष्टि गंधोद झरी हो ॥ सिद्धारथ. ॥ २ ॥ जनमत जिनके जग सुख पाया दूरि गये सब दुक्ख टरी हो । अन्तर मुहूर्त नार की सुखिया ऐसो अतिशय जन्म धरी हो ॥ सिद्धारथ. ॥ ३ ॥ दान देय नृप ने बहुतेरो जाचिक जनमन हर्ष करी हो । ऐसे वीर जिनेश्वर चरणौ 'बुध'महाचन्द्र जु सीस धरी हो । सिद्धारथ. ॥ ४ ॥
(४८६) धन्य घड़ी याही धन्य घड़ी री । आज दिवस याही धन्य घड़ री॥ टेक ॥ पुत्र सुलक्ष्मण महासैन घर जायो चन्द्रप्रभु चन्द्रपुरी री ॥ धन्य. ॥ १ ॥
१. हाथी जैसी चाल २. चन्द्रमा जैसा मुख ३. युवतियाँ ४. सब ५. अयाचकों को याचक बना दिया ६. पैर ७. इन्द्र रूपी नट ८. बहती है ९. छहरस १०. वस्त्र ११. कमर का (थिरकना) १२. शीघ्र ही १३. तृप्त होना १४. बजना १५. श्रेष्ठ १६. घड़ी १७. दिखाई देता है।
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