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________________ (१६४) (४५०) जोई दिन कटै सोई आव'मैं अवश्य घटे बूंद बूद बीतै जैसे अंजुली' को जल है। देह नित दीन होत नैन तेजहीन होत, जोवन मलीन होत छीन होत बल है ॥ आवै जरा नेरी तके अंतक अहेरो आवै, परभौं नजीक जात नरभौं विफल है । मिलकै मिलापी जन पूंछत कुशल मेरी, ऐसी दशामाहि° मित्र काहे की कुशल है। (४५१) देखहु जोर११ जरा भढकौ, जमराज२ महीपति को अगवानी । उज्जवल ३ फेस निसान धरें, बहु रोगन की संग फौज पलानी । कायपुरी तजि भाजि चल्यौ जिह, आबत जोबन५ भूप गुमानी'६ । लूट लई नगरी सगरी, दिन दोय मैं खोय है नाम निसानी ॥ कवियित्री चम्पा (४५२) दिन यों ही बीते जाते हैं। दिन.॥ टेक ॥ जिनके हेत- आप बहुकीने, ते कुछ काम न आते हैं। दिन ॥१॥ सजन संगाती स्वारथ साथी। तन धन तुरत नशाते है। दुख आये कोई होय न सीरी२° । पाप तेरे लपटाते हैं ॥ दिन ॥२॥ कुकथा सुनत प्रेम अति बाड़े, सुकथा सुन मुरझाते है । सप्तव्यसन सेवन में मुखिया, क्यों कर समकित पाते हैं ।दिन ॥ ३ ॥ धन को पाय मान के वश२२ है, मस्तक विकट उचाते२३ हैं । जब हम आय करे शिर वासा, अब अति ही पछताते हैं । दिन ॥ ४ ॥ क्रोध मान छल लोभ काम वश, नाना भेज बनाते हैं। ऐसे नरभव पाय गमावत', फिर क्या यह विधि पाते हैं ॥दिन ॥५॥ जिनवर अरचा२६ आगम चरचार, करत न मन हरजाते हैं। 'चम्पा' सोच भजो जिनवर पद, नातर गोते खाते हैं |दिन ॥६॥ १.आयु में २.अंजलि के पानी की तरह ३.जवानी ४.क्षीण हो जाता है ५.बुढापा पास आता है ६.मृत्यु ७.शिकारी ८.परभव ९.नरभव १०.दशा में ११.बुढापा रूपी योद्धा का बल १२.यमराज रूपी राजा १३.सफेद बाल १४.भाग गई १५.यौवन रूपी राजा १६.घंमडी १७.समस्त १८.लिए १९.नष्ट हो जाते हैं २०.साथी २१.मुरझा जाते है २२.वश में होकर २३.ऊंचा करते हैं २४.पछताना २५.नष्ट करना २६.पूजा २७. वार्ता २८.अन्यथा जिनवर अरचा जो जिनवर पद, न Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003995
Book TitleAdhyatma Pad Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchedilal Jain, Tarachand Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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