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________________ (१४५) (४०७) भाई ! अब मैं ऐसा जाना ॥टेक ॥ पुद्गल दरव' अचेत भिन्न है, मेरा चेतन बाना ॥ भाई. ॥१॥ कलप अनन्त सहत दुख बीते, दुख को सुखकर माना । सुख दुख दोउ कर्म अवस्था मैं कर्मन” आना ॥ भाई. ॥ २ ॥ जहाँ भोर था तहाँ भई निशि, निशि की ठौर विहाना । भूल मिटी जिनपद पहिचाना, परमानन्द निधाना ॥ भाई. ॥ ३ ॥ गूंगे का गुड़ खांय कहै किमि, यद्यपि स्वाद पिछाना । ‘द्यानत' जिन देख्या ते, जाने मेढ़क हंस पखाना ॥भाई. ॥ ४ ॥ (४०८) आतम जान रे जान रे जान रे॥टेक ॥ जीवन की इच्छा करै कबहु न मांगे काल । (प्राणी) सोई जान्यो जीव है, सुख चाहै दुख टाल ॥ आतम. ॥१॥ नैन बैन१ में कौन है, कौन सुनत है बात । (प्राणी) देखत क्यों नहिं आपमें, जाकी चेतन जात ॥ आतम. ॥२॥ बाहिर अंतर निपट२ नजीक (प्राणी) ढूंढन दूर है वाला कौन है । सोई जानो ठीक ॥ आतम. ॥३॥ तीन भवन में देखिया आतम राम नहिं कोय । (प्राणी) द्यानत' जे अनुभव करें, तिनको शिवसुख होय ॥आतम. ॥ ४ ॥ (४०९) मैं निज आतम कब ध्याऊंगा ॥टेक ॥ रागादिक परिनाम त्याग के, समता सौं लौ३ लाऊंगा॥ मैं ॥१॥ मन बच काय जोग थिर४ करकै ज्ञान समाधि लगाऊंगा । कब हौ क्षिपक'५ श्रेणि चढ़ि ध्याऊं चारित मोह न गाऊंगा। मै. ॥ २ ॥ चारों करम घातियाखन, ६ करि परमातम पद पाऊंगा। १. द्रव्य २. अन्य ३. जहां सबेरा था ४. वहां रात हो गई ५. सबेरा ६. कैसे ७. पहचाना ८. पत्थर ९. कभी मृत्यु नहीं मांगता १०. नेत्र ११. वचन १२. बिल्कुल पास १३. चाह १४. स्थिर १५.क्षपक श्रेणी १६.घातिया कर्म नाश करके। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003995
Book TitleAdhyatma Pad Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchedilal Jain, Tarachand Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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