________________
(१४०) कविवर भागचंद (३९३)
राग-गौरी आतम अनुभव आवै जब निज आतम अनुभव आवै,
और कछु' न सुहावै, जब निज. ॥ टेक ॥ रस नीरस हो जात ततछिन, अच्छ' विषय नहीं भावै ॥ जब निज. ॥१॥ गोष्टि कथा कुतुहल विघटैं, पुद्गल प्रीति नसावै ॥ जब निज. ॥ २ ॥ राग दोष जुग चपल पक्षनुत मन पक्षी मर जावै॥ जब निज. ॥ ३ ॥ ज्ञानानन्द सुधारस उमगै घट अंतर न समावै ॥ जब निज. ॥४॥ 'भागचंद' ऐसे अनुभव के हाथ जोरि सिर नावै ॥ जब निज. ॥ ५ ॥
(३९४) आकुल रहित होय इमि निशिदिन कीजै तत्व विचारा हो । को मैं कहाँ रूप है मेरा, पर है कौन प्रकारा हो ॥ टेक ॥१॥ को ‘भव कारण बंध कहा को, आस्रव रोकन हारा हो। खिपत कर्म बंधन काहे सो थानक कौन हमारा हो ॥ २॥ इमि अभ्यास किये पावत है,१ परमानंद अपारा हो । 'भागचन्द' यह सार जन करि, कीजे बारंबारा हो ॥३॥
(३९५)
राग-दीपचन्दी जोड़ी जिन स्वपर हिताहित चीना, २ जीव तेही सांचै१३ जैनी ॥ टेक ॥ जिन बुध छैनी पैनी तें जड़, रूप निराला शीना । परतें विरच" आपसे राचे ६ सकल विभाव विहीना ॥१॥ पुण्य पाप विधि बंध उदय में, प्रमुदित होत न दीना । सम्यक्दर्शन ज्ञान चरन निज, भाव सुधारस भीना ॥२॥ विषय चाह तजि निज वीरज सजि करत पूर्व विधि छीना 'भागचन्द' साधक है साधत, साध्य स्वपद स्वाधीना ॥३॥
१. कुछ भी अच्छा नहीं लगता २. इन्द्रियों के विषय ३. राग द्वेष रूपी दो चंचल पंखे ४. उमड़ता है ५. इस प्रकार ६. दिन रात ७. अन्य किस प्रकार का है ८. आस्रव रोकने वाला कौन है ९. खपते हैं १०. स्थान ११. पाता है १२. पहचाना १३. सच्चे १४. बुद्धि रूपी छैनी १५. विरक्त होकर १६. रक्त या लीन १७. आनंदित १८. पहले कर्मों का नाश किया।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org