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________________ (१३१) मोह मच्छ अरू काम कच्छतें, लोभ लहर” उबारो ॥ हो. ॥ १ ॥ खेद खारजले दुख-दावानल, भरम भँवर भय टारो ॥ हो. ॥२॥ 'द्यानत' बार बार यों भाषै, तू ही तारन हारो ॥ हो. ॥ ३ ॥ (३७१) मोहि तारो हो देवाधिदेव, मैं मनबचतन करि करौ सेव ॥ टेक ॥ तुम दीन दयाल अनाथ नाथ, हमहू को राखो आप साथ ॥ १ ॥ यह मारवाड़ संसार देश, तुम चरन कलपतरु हर कलेश ॥२॥ तुम नाम रसायन जीय पीय, ‘द्यानत' अजरामर भव त्रितीय ॥ ३ ॥ (३७२) तुम प्रभु कहियत दीन दयाल ॥ टेक ॥ आपन जाय मुकत मैं बैठे, हम जु रुलत जगजाल ॥ तुम. ॥१॥ तुमरो नाम जपें हम नीके, मन बच तीनो काल । तुमतो हम को कछू देत नहिं, हमरो कौन हवाल° ॥ तुम ॥२॥ बुरे भले हम भगत तिहारे, जानत हो हम चाल । और कछु नहिं यह चाहत हैं, राग दोष कौं टाल ॥ तुम. ॥३॥ हमसौ चक' परी सो वकसो, तुम सो कृपा विशाल । 'द्यानत' एक बार प्रभु जगतै, हम को लेहु निकाल ॥ तुम. ॥ ४ ॥ कविवर जिनेश्वरदास (३७३) सुनिये सुपारस आज हमारी . ॥ सुनिये. ॥ लख चौरासी जोन'२ फिर्यो मैं, पायो दुख अधिकारी ॥ सुनिये. ॥१॥ बड़े पुण्यते नरभव पायो, शरन गही अब थारी३ ॥ सुनिये. ॥ २ ॥ रत्नभय निधि निज की दीजै, कीजे ४ विधि निरवारी ॥ सुनिये ॥३॥ अधम उधारक देव ‘जिनेश्वर' आज हमारी वारी ॥ सुनिये. ॥ सुनिये. ॥ ४ ॥ ___ (३७४) मेरी जिनवर सुनो पुकार वसुविधि कर्मजलाने वाले ॥टेक ॥ १.बडी मछली २.दलदल कीचड़ ३.दुख ४.खारा पानी ५.बोलते हैं ६.मन बचन तन से सेवा करता हूं ७.कष्ट दूर करो ८.तीन ९.भटकता हूं १०.हाल ११.प्रांत हूं अत: बकता हूं १२.योनि १३.आपकी १४.कर्मों को दूर कर दें । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003995
Book TitleAdhyatma Pad Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchedilal Jain, Tarachand Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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