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(१०६)
यही चतुराई मद मांस को बचाव रे ॥ साध खड कर्म' साध संगति में बैठ वीर जो है धर्म साधन को तेरे चित' वावरे ॥
(३००) अघ अंधेर आदित्य नित स्वाध्याय करीज्जै । सोमोपम संसार तापहर तप कर लिज्जै । जिनवर पूजा नियम करहु, नित मंगल दायनि । बुध संजम आदरहु धरहु चित श्री गुरू पायनि । निजवित्त समान अभिमान बिन सुकर सुपतहि दान । कर यौंसनि सुधर्म षटकर्म मनि नरभौ -लाहो ले हुनर ॥
(३०१) काहे को बोलतो बोल बुरे नर नाहक' क्यो जस धर्म गमावै। कोमल बैन चवै किन ऐन, लगै३ कछु है न सबै मन भावै ॥ तालु छिदै रसना न मिटै, न घटे कछु अंक दरिद्रन आवै जीभ कहै जिय हानि नहीं तुझ जीवन को सुख पावै ॥
(३०२) आयो है अचानक भयानक असाता कर्म, ताके ४ दूर करिवे को बली५ कौन अह २१६ । जे जे मन भाये ते कमाये पूर्व पाप आप, तेई अब आये निज उदय काल लह रे ॥ ऐके मेरे वीर काहै होत है अधीर, यामै कोऊ को न सीर° तू अकेलौ आप सह रे॥ भय दिलगीर२१ कछू पीर न विनसि जाय, ताहीं तै सयाने तू तमासगीर२२ रह रे ॥
१.षट्कर्म २.मन में प्रेम ३.पाप रूपी अंधकार को सूर्य ४.करो ५.चंद्रसमान ६.कर लीजै ७.श्री गुरू चरण में चित ८.सम्पत्ति का दान ९.नरभव १०.व्यर्थ ११.यश १२.खोता है १३.कुछ नहीं लगता १४.उसके १५.बलवान १६.है १७.उदय काल पाकर १८.क्यों १९.बेचैन २०.साथी २१.दुखी २२.तमाशा देखने वाला।
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