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(९९) मोह रागरूष अहित जान तजि, बंधहु' विधि दुखदान ॥ २ ॥ निज स्वरूप में मगन होय कर लगन विषय दो मान ॥३॥ 'भागचन्द' साधक कै साधो, साध्य स्वपद अमलान' ॥ ५ ॥
(२८२) प्रेम अब त्यागहु पुद्गल का अहित मूल यह जाना सुधीजन ॥ टेक ॥ कृमि-कुल कलित स्रवत नव द्वारन यह पुतला मल का । काकादिक भखते जु न होता, चामतना खल का ॥ प्रेम. ॥ १ ॥ काल व्याल मुख थित इसका नहिं है विश्वास पल का। क्षणिक मात्र में विघट जात है, जिमि वुदावुद जल का ॥ प्रेम. ॥ २ ॥ 'भागचन्द' क्या सार जानके तू या सेंग ललका' । ता” चित अनुभव कर जो तू इच्छुक शिव फल का ॥ प्रेम. ॥ ३ ॥
महाकवि भूधर (पद २८३-३०२)
(२८३)
राग-सोरठ अज्ञानी पाप१२ धतूरा न वोय'३ ॥ टेक ॥ फल चाखन की वार भरै५ दृग, मर है मूरख रोय ॥ अज्ञानी. ॥ १॥ किंचित विषयनिके सुख कारण दुर्लभ देह न खोय । ऐसा अवसर फिर न मिलेगा, इस नींदड़ी न सोय ॥ अज्ञानी. ॥ २ ॥ इस विरियां ८ मैं धर्म कल्पतरू सीचंत सयाने लोय । तू बिष बोवन लागत तो° श्रम और अभागा कोय ॥ अज्ञानी. ।। ३ ।। जे जग में दुख दायक वेरस' इसही के फल होय । यों मन ‘भूधर' जान कै भाई, फिर क्यों भोंदू होय ॥ अज्ञानी. ॥ ४ ॥
(२८४)
राग-सोरठ सुनि अज्ञानी प्राणी श्री गुरू सीख सयानी२२ ॥ टेक ॥ नरभव पाय विषय मति२३ सेवो ये दुरमति अगवानी ॥१॥
रामसार०
१.कर्म बंध २.निर्मल ३.शरीर का ४.कीड़ों से भरा हुआ ५.नौ दरवाजे ६.मैल का पुतला ७.खाले ८.चमड़े का खोल ९.सर्प १०.जिस प्रकार ११.लपकना १२.पाप रूपी धतूरा १३.बोओ १४.फल चखने के समय १५.आंखे भर जाती है १६.कुछ १७नीद १८.इस समय में १९.लोग २०.तुम्हारे समान २१.वे सब रस २२.समझदार २३.सेवन मत करो।
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