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________________ यह दुर्भाग्य का विषय है कि राष्ट्र के इन समुन्नत तथा चरित्र-निर्माण के एक विशेष अंश के रूप में ज्ञात इस साहित्य को विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों तथा राष्ट्रिय महत्त्व के अन्य पाठ्यक्रमों में स्थान नहीं दिया गया। जबकि वर्तमान के सन्दर्भो में यह साहित्य राष्ट्र एवं सामाजिक निर्माण में एक विशिष्ट भूमिका अदा कर सकता है। वर्णी संस्थान प्रस्तुत महत्त्वपूर्ण पदों के संग्रहकर्ता डॉ० कन्छेदीलाल जी के प्रति अपना आभार व्यक्त करता है, जिन्होंने विविध कवियों की रचनाओं से विविध विषयक प्रमुख पदों का संकलन किया। इन पदों के मूल्याकंन एवं तुलनात्मक अध्ययन करने की भी उनकी प्रबल इच्छा थी, किन्तु क्रूर काल को यह स्वीकार्य न था। अत: वे असमय में ही हमारे बीच से उठ गए। ____संस्थान के प्रकाशनों के नियमानुसार प्रत्येक ग्रन्थं का उच्चस्तरीय मूल्यांकन एवं समीक्षात्मक तथा तुलनात्मक अध्ययन होना आवश्यक है। अत: उसकी तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक विस्तृत प्रस्तावना के लेखन हेतु संस्थान के उपाध्यक्ष डॉ० अशोककुमार जैन ने अनेक विद्वानों से सम्पर्क किया किन्तु उसमें उन्हें सफलता नहीं मिल सकी। अन्ततः डॉ० (श्रीमती) विद्यावती जैन से उन्होंने विशेष अनुरोध किया और यह कहते हुए प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है कि उन्होंने उनका अनुरोध स्वीकार कर प्रस्तावना एवं पद्यानुक्रमणिका आदि तैयार कर दी। उनके इस सौजन्यपूर्ण सहयोग के लिए संस्थान उनके प्रति आभार व्यक्त करता है। ____डॉ० कन्छेदीलाल जी की धर्मपत्नी श्रीमती क्रान्ति जैन ने तथा उनके प्रिय पुत्र एवं पुत्रवधू श्री पुष्पभद्र जैन (सिविल कार्यपालक इंजिनियर, एन०एच०पी०सी०) (भारत सरकार) तथा श्रीमती रश्मि जैन (वरिष्ठ कम्प्यूटर इंजिनियर) ने उसकी २०० प्रतियाँ वर्णी ग्रन्थमाला से लागत मूल्य में खरीदकर उन्हें समाज के स्वाध्यायशील श्रावकों, एवं विद्वानों को वितरित करने की इच्छा व्यक्त की है। संस्थान उनकी इस आदर्श प्रेरक एवं उत्साहवर्धक प्रवृत्ति का हार्दिक स्वागत करता है। जिनवाणी के प्रचार-प्रसार का यह एक सर्वोत्तम साधन है। श्रुतपञ्चमी पर्व- २२/५/९५ महाजन टोली नं०२ आरा (बिहार)-८०२३०१ प्रो०(डॉ0) राजाराम जैन प्रो0 उदयचन्द्र जैन, वाराणसी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003995
Book TitleAdhyatma Pad Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchedilal Jain, Tarachand Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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