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________________ (६८) जिन' सब मत के मत संचय, करि मारग एक बताया । 'द्यानत' सो गुरु पूरा पाया, भाग हमारा आया ॥ भाई ॥ ४ ॥ ( १९९) राग गौरी सैली' जयवंती यह हजो ॥टेक॥ ल्यागो 1 ॥ सैली. ॥ २ ॥ शिवमारग को राह बताबे और न कोई दूजो ॥ सैली. ॥ १ ॥ देव धरम गुरु सांचे जानै झूठो मारग सैली के परसाद हमारो, जिन चरनन चित लाग्यो दुख चिरकाल सह्यौ अति भारी, सो अब सहज बिलायो दुरित तरन दुख हेरन मनोहर, धरम पदारथ पायो ॥ सैली. ॥ ३ ॥ 'द्यानत' कहै सकल सन्तन को, नित प्रति प्रभुगुन गायो । जैन धरम परधान ध्यान सौं, सबही शिवसुख पावो ॥ सैली. ॥ ४ ॥ कवि जिनेश्वरदास (पद २००) (२००) ॥ वन में नगन तन राजै, " योगीश्वर महाराज ॥ इकलो दिगम्बर स्वामी दूजो कोई नांहि साथ पांचों महाव्रत धारी, परीसह जीते बहुभांति ॥ वन में. जिअन मन मार्यो हिरदै धारयो वैराग ॥ वन रजनी भयानक कोरी, विचरै' व्यंतर वैताल ॥वन में. में. ॥ वरसै' विकट घनमाला, दमके दामिनी चालै वाय° सरही कपिन मद" गालै, थरहर १२ कांपै सब गात रवि की किरण सर१३ सोखै, गिरपै ठाड़े मुनिराज जिनके चरन की सेवा, देवे शिव सुख साज अरजी 'जिनेश्वर' ये ही, प्रभुजी राखो मेरी लाज ॥ वन में. ॥ वन में. महाकवि दौलतराम (पद २०१ - २०५) वन में ॥ टेक ॥ वन में. ॥ १ ॥ ॥ २ ॥ ॥ ३ ॥ ॥ ४ ॥ ॥ वन में. ॥ ५ ॥ ॥ ६ ॥ ॥ Jain Education International वन में. वन में. (२०१) चिन्मूरति दिग्धारी" की मोहि रीति लगत है अटपटी ॥ टेक ॥ ॥ ७ ॥ ॥ ८ ॥ १. सब मतों का संचय २. ढंग, पद्धति ३. और दूसरा नहीं ४. सहन किया ५. सुशोभित होना ६. २२ परीसह ७. रात्रि ८. विचरण करते हैं ९. बरसते हैं १०. हवा ११. मद चूर करना १२. थरथर कांपना १३. तालाब १०. दिगम्बर । For Personal & Private Use Only ॥ ९ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.003995
Book TitleAdhyatma Pad Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchedilal Jain, Tarachand Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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