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________________ (६२) तातैं ' भागचन्द्र' निशिवासर इक ताही को रटी ॥ म्हांकै ॥ ३ ॥ महाकवि दौलत राम (पद १८२) (१८२) ॥ टेक ॥ राग - उझाज जोगी रासा जिनवाणी सुधा' सम जानके प्रगटी जन्म जरा गढ टारी परम सुरुचि करतारी । व्यापी, ॥ ति. ॥ १ ॥ । नित पीज्यौ धी- धारी' वीर मुखारविंद तैं गौतमादि-उर घट ● - मल - गंजन, बुधमन रंजनहारी । सलिल समान कलिल - भंजन विभ्रम धूलि प्रभंजन, मिथ्या जलद निवारी ॥ नित. ॥ २ ॥ कल्याणक तरु उपवन धरिणी तरनी भव जल तारी बंध विदारणा पैनी छैनी मुक्ति नसैनी सारी स्वपर स्वरूप प्रकाशन को यह भानु कला' अव मुनि मन कुमुदिनि मोदन शशिभा, शमसुख सुमन सुवारी जाको सेवत वेवत ११ निजपद नसल अविद्या सारी तीन लोकपति पूजत जाको जान त्रिजग १२ हितकारी कोटि जीभसौं महिमा जाकी कहि न सके पविधारी । १३ 'दौल' अल्पमति केम१४ कहै इम" अधम उधारनहारी ॥ ति. ॥ ६ ॥ ॥नितः ॥ ५ ॥ । - महाकवि बुधजन (पद १८३-१८७) गुरु-स्तुति (१८३) . १६ १७ १८ गुरु दयाल तेरा दुःख लखिकैं, सुनलै जो फुरकावैहै ॥ गुरु. ॥ टेक ॥ तो में तेरा जतन " बताबै, लोभ कछु नहि चावै है ॥ गुरु. ॥ १ ॥ पर स्वभाव को मोर्या ९ चाहै, अपना उसा २० बनावै है । Jain Education International ॥ ति. ॥ ३ ॥ । ॥नित. ॥ ४ ॥ सो कबहूं हुवा न होसी, " नाहक रोग लगावै है ॥गुरु ॥ २ ॥ खोटी खरी जस२२ करी कमाई, तैसी तेरे आवै है । चिन्ता आणि उठाय हिया मैं नाहक जान जलावै है ॥गुरु ॥ ३ ॥ पर अपनावै सो दुख पावै, 'बुधजन' .२३ ऐसे गावै है १. बुद्धिमान २. अमृत के समान ३. जन्म जरा रोग ४. पाप रूपी मैल धोने वाली ५. प्रसन्न करने वाली ६. तूफान ७. नष्ट करने को ८. मोक्ष की सीढ़ी ९. सूर्य किरण १०. चांदनी ११. समझते हैं १२. तीनलोक १३. इन्द्र १४. किस प्रकार १५. ऐसे १६. देखकर १७. कहें १८. यत्न, उपाय १९. मोडना, २०.. वैसा २१. लेगा २२. जैसा २३. व्यर्थ । For Personal & Private Use Only । www.jainelibrary.org
SR No.003995
Book TitleAdhyatma Pad Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchedilal Jain, Tarachand Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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