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गौतम मुख हेम कुल परवत तल दरह बिच में ढरनी ॥ २ ॥ स्याद्वाद दोऊ तट अति दृढ़ तत्व नीर झरणी ॥ जिनवा. ॥ ३ ॥ सप्तभंग मय चलत तरंगिनी, तिनतें फैल चल राठी ॥४॥ बुधमहाचन्द्र श्रवण अंजुली से पीवो मोक्षकरणी ॥ जिनवा. ॥ ५ ॥
(१७७) जिनवाणी सदासुखदानी, जानि तुम सेवो भविक जिनवानी ॥ टेर ॥ इतर नित्य निगोद मांहि जे जीव अनंत समानी । एक सांस अष्टदश जामण मरण कहे दुखदानी ॥ जिन. ॥ १ ॥ पृथ्वी जल अरु अग्नि पवन में और वनस्पति आनी । इनमें जीव जिताय जितायर जीव दया की कहानी ॥ जिन. ॥ २ ॥ नित्य अकारण आदि निधन करि तीन लोक त्रय मानी । करता हरता कोउ नाय याको ऐसो भेद जतानी ॥ जिन. ॥ ३ ॥ बात बलय बेढ़ि घनोदधि घन तनु तीन रहानी । इन आधार लोक त्रय राजत, और कछु न बखानी ॥जिन. ॥ ४ ॥ ऐसी जानि जिनेश्वर वानी, मिथ्यातम की मिटानी । बुधमहाचन्द्र जानि जिन सेवे, धारि-धारि मन मानी ॥जिन. ॥ ५ ॥
(१७८) अमृत झर झुरि झुरि आवे जिनवानी ॥ अमृत. ॥ टेर ॥ द्वादशांग बादल हे उमड़े ज्ञान अमृत रसखानी ॥ अमृत. ॥१॥ स्याद्वाद विजुरी अति चमके शुभ पदार्थ प्रगटानी । दिव्य ध्वनी गंभीर गरज है श्रवण सुनत सुखदानी ॥अमृत. ॥ २ ॥ भव्य जीव मन भूमि मनोहर पाप कूड़कर हानी । धर्म बीज तहां ऊगत नीको मुक्ति महाफल ठानी ॥ अमृत. ॥ ३ ॥ ऐसे अमृत झर अतिशीतल मिथ्या तपन २ भुजानी । बुधमहाचन्द्र इसी झर भीतर मग्न सफल सोही जानी ॥अमृत. ॥ ४ ॥
१. ढलने वाली २. नदी ३. मोक्ष देने वाली ४. भव्य ५. एक सांस में अठारह बार जन्म लेना और मरना ६. जताये बताये ७. समझाई ८. वर्ण ९. बरसे, टपके १०. बिजली ११. कूड़ा कचरा १२. जलन १३. बुझ गई।
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