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________________ (५४) स्वपर विवेक अखण्ड मिलत है, जाही' के सर धानी ॥ जानके ॥ २ ॥ अखिल प्रमान सिद्ध अविरुद्धत, स्यात्पद शुद्ध निशानी ॥जानके ॥ ३ ॥ 'भागचन्द' सत्यारथ' जानी, परम धरम रजधानी ॥ जानके ॥ ४ ॥ (१६०) राग-लावनी ५ 11 8 11 धन्य-धन्य है घड़ी आजकी जिनधुनि श्रवन परी तत्व प्रतीति भई अब मेरे मिथ्यादृष्टि टरी ॥ टेक ॥ जड़तैं भिन्न लखी चिन्मूरति चेतन स्वरस भरी अहंकार ममकार " बुद्धि पुनि परमें सब परि हरी ॥ धन्य. पाप पुण्य विधि बन्ध अवस्था, भासी अति दुःख भरी वीतराग विज्ञान भावमय, परिनल अति विस्तरी ॥ धन्य चाह दाह विनसी बरसी पुनि, समता मेघ बाढ़ी प्रीति निराकुल पदसों, 'भागचंद' हमरी ॥ महाकवि भूधरदास (पद ९६४ - १६६ ) (१९६१) राग-ख्याल प्यारी Jain Education International थांकी जी प्यारी भूल जी १२ .१५ कथनी म्हानै लगैजी म्हांरी ॥टेक 11 तुम हित हांक" बिना हो, श्री गुरु सूतो जियरो कांई जगै जी ॥ थांकी. ॥ १ ॥ मोहनि १३ धूलि मेलि४ म्हारे मांथे, तीन रतन " म्हारा मोह ठगै जी । तुम पद ढोकत" सीस झरी रज अब ठग को कर नाहिं वगै १७ जी ॥ थांकी. ॥ २ ॥ टूट्यो चिर मिथ्यात महाज्वर भागां" मिल गया वैद" अगै जी । अंतर अरुचि मिटी मम आतम, अब अपने निज दर्व पगै जी ॥ थांकी. ॥ ३ ॥ भव वन भ्रमत बढ़ी तिसना तिस, क्यो हि मुझे नहिं हियरा दर्गे जी । 'भूधर' गुरु उपदेशामृत रस शान्तमई आनन्द उमगै जी ॥ थांकी ॥ ४ ॥ १८ .१९ लागै ॥ २ ॥ झरी । धन्य. ॥ ३ ॥ भगै १० १. जिसके श्रद्धान से २. सत्यार्थ । ३. जिनवाणी ४. कानों में पड़ी ५. मेरा है ऐसी वुद्धि ६. छोड दी ७. आपकी ८. मुझे ९. मेरी १०.भग गई ११. भलाई की पुकार १२. कैसे १३. मोह की धूलि १४. मेरे सिरपर रखकर १५. रत्नत्रय १६. प्रणाम करने से १७. ठग के हाथ नहीं भटकेगा १८. भाग्य से १९. मिली २०. निजद्रव्य । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003995
Book TitleAdhyatma Pad Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchedilal Jain, Tarachand Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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