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________________ ४२६ समयसार शक्ति है। इस शक्ति से आत्मा में अभावरूप अनागत पर्याय का उदय होता है। (३७) वर्तमान पर्याय के होने रूप सैंतीसवीं भावाभावशक्ति है। इस शक्ति से आत्मा अपनी वर्तमान पर्याय में वर्तता है। (३८) न होने वाली पर्याय के न होनेरूप अड़तीसवीं अभावाभावशक्ति है। इस शक्ति से आत्मा में अविद्यमान पर्याय का अभाव रहता है। (३९) कर्ता-कर्म आदि कारकों से अनुगत क्रिया से रहित होकर होना ही जिसका स्वरूप है ऐसी उनतालीसवीं भाव शक्ति है। इस शक्ति से आत्मा कर्ता-कर्म आदि कारकों से रहित होकर ही प्रवर्तता है। (४०) कारकों से अनुगत होकर होना जिसका स्वरूप है ऐसी चालीसवीं क्रियाशक्ति है। इस शक्ति से आत्मा कारकों का विकल्प साथ में लेकर प्रवर्तता है। (४१) प्राप्त होते हुए सिद्धरूप भाव से तन्मय इकतालीसवीं कर्मशक्ति है। इस शक्ति से आत्मा स्वयं सिद्ध (प्रकट) होता हुआ कर्मरूप होता है। (४२) होनेरूप जो सिद्धरूप भाव उसके भावकपन से तन्मय व्यालीसवीं कर्तृत्व शक्ति है। इस शक्ति से आत्मा की जो सिद्धरूप दशा है उसका करनेवाला वह स्वयं होता है। (४३) होते हुए भाव के होने में जो साधकतमपन है उससे तन्मय तेतालीसवीं करणशक्ति है। इस शक्ति से आत्मा में जो भाव हो रहा है उसका अतिशय साधक वह स्वयं होता है। (४४) स्वयं दिये जानेवाले भाव के उपेयपन से तन्मय चवालीसवीं सम्प्रदानशक्ति है। इस शक्ति से आत्मा के द्वारा जो भाव दिया जा रहा है उसके द्वारा उपेय-प्राप्त करने योग्य आत्मा स्वयं होता है। (४५) उत्पाद-व्यय से आलिंगित भाव के अपाय में जो हानि से रहित ध्रुवपन (अवधिपन) है उससे तन्मय पेंतालीसवीं अपादान शक्ति है। इस शक्ति के कारण आत्मा से जब उत्पाद-व्यय से युक्त भाव का अपाय होने लगता है अर्थात् ऐसा भाव जब आत्मा से पृथक् होने लगता है तब उसका अवधिभूत-अपादान आत्मा स्वयं होता है। (४६) भाव्यमान भाव के आधारपन से तन्मय छयालीसवीं अधिकरणशक्ति है। इस शक्ति से आत्मा भावने योग्य भावों का आधार स्वयं होता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003994
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshprasad Varni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year2002
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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