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सर्वविशुद्धज्ञानाधिकार
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पुद्गलकर्म का कर्ता माना जाय तो जीवद्रव्य को पुद्गलकर्म रूप परिणमन करना चाहिये, पर ऐसा हो नहीं सकता। इसलिये जीव और पुद्गलकर्म का परस्पर एकक्षेत्रावगाहरूप संयोग सम्बन्ध होने पर भी उनमें कर्तृ- कर्मभाव सिद्ध नहीं होता है। व्यवहारनय निमित्त- नैमित्तिकभाव को ग्रहण करता है, इसलिये उस नयकी दृष्टि से जीव, पुद्गल - कार्मणवर्गणाओं में कर्मरूप परिणमन कराने में निमित्त होने से उनका कर्ता होता है और पुद्गलकर्म उसके कार्य होते हैं ।। २१२ ।।
रथोद्धताछन्द
यत्तु वस्तु कुरुतेऽन्यवस्तुनः किंचनापि परिणामिनः स्वयम् । व्यावहारिकदृशैव तन्मतं नान्यदस्ति किमपीह निश्चयात्।।२१३।।
अर्थ- स्वयं परिणमन करनेवाली अन्य वस्तु का अन्य वस्तु कुछ करती है, यह जो मत है, वह व्यावहारिक दृष्टि से ही सम्पन्न होनेवाला मत है । निश्चयनय से इस जगत में अन्य वस्तु का अन्य कुछ भी नहीं है ।
भावार्थ- संसार के प्रत्येक पदार्थ स्वयं परिणमनशील है। उनके उस परिणमन में अन्य पदार्थ निमित्त होते हैं, इसलिये निमित्तप्रधान दृष्टि को अङ्गीकृत कर व्यवहारनय ऐसा कथन करता है कि अमुक वस्तु अमुक वस्तु की कर्ता है | परन्तु जब निश्चयनय से विचार होता है तब एक वस्तु दूसरी वस्तु रूप नहीं होती, इसीलिये वह उसका कर्ता नहीं है, यह सिद्धान्त प्रकट होता है। निश्चयनय उपादानप्रधार दृष्टि को अङ्गीकृत कर कथन करता है ।। २१३ ।।
आगे इसी कथन को दृष्टान्तद्वारा स्पष्ट करते हैं
जह सेडिया दु ण परस्स सेडिया सेडिया य सा होइ । तह जाणओ दु ण परस्स जाणओ सो दु । । ३५६ । । जह सेडिया दुण परस्स सेडिया सेडिया य सा होइ । तह पासओ दु ण परस्स पासओ पासओ सो दु । । ३५७ ।। जह सेडिया दु ण परस्स सेडिया दु सा होइ । तह संजओ दु ण परस्स संजओ संजओ सो दु । । ३५८ ।। जह सेडिया दुण परस्स सेडिया सेडिया दु सा होदि । तह दंसणं दु ण परस्स दंसणं दंसणं तं तु ।। ३५९ ।।
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