SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 409
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३३८ समयसार ताण को वि जीवो अबंभचारी उ अम्ह उवएसे । जह्मा कम्मं चेव हि कम्मं अहिलसइ इदि भणियं ।। ३३७ ।। जह्मा घाएइ परं परेण घाइज्जए य सा पयडी । एएणच्छेण किर भण्णइ परघायणामित्ति ।। ३३८ ।। ताण को वि जीवो वघायओ अत्थि अम्ह उवदेसे । जह्मा कम्मं चेव हि कम्मं घाएदि इदि भणियं । । ३३९ ।। एवं संखुवएसं जे उ परूविंति एरिसं समणा । तेसिं पयडी कुव्वइ अप्पा य अकारया सव्वे ।। ३४० ।। अवहा मण्णसि मज्झं अप्पा अप्पाणमप्पणो कुणई । एसो मिच्छसहावो तुम्हं एयं मुणंतस्स ।। ३४१ ।। अप्पा णिच्चो असंखिज्जपदेसो देसिओ उ समयम्हि । वि सो सक्कइ तत्तो हीणो अहिओ य काउं जे ।। ३४२ ।। जीवस्स जीवरूवं वित्थरदो जाण लोगमित्तं खु । तत्तो सो किं हीणो अहिओ व कहं कुणइ दव्वं ।।३४३ ।। अह जाणओ उ भावो णाणसहावेण अत्थि इत्ति मयं । तह्मा ण वि अप्पा अप्पयं तु सयमप्पणो कुणइ ।। ३४४ । । (त्रयोदशकम्) अर्थ- जिस प्रकार जीव कर्मों से अज्ञानी किया जाता है उसी प्रकार कर्मों से ज्ञानी किया जाता है, जिस प्रकार कर्मों से सुलाया जाता है, उसी प्रकार कर्मों से जगाया जाता है, जिस प्रकार कर्मों से सुखी किया जाता है, उसी प्रकार कर्मों से दुःखी किया जता है। कर्मों से मिथ्यात्व को प्राप्त कराया जाता है, कर्मों से असंयम को भी प्राप्त कराया जाता है, कर्मों से जीव ऊर्ध्वलोक, अधोलोक और मध्यलोक में भ्रमाया जाता है तथा शुभ-अशुभ जितने कुछ भाव हैं वे सब कर्मों से किये जाते हैं, क्योंकि कर्म ही करता है, कर्म ही देता है, कर्म ही हरता है, जो कुछ है उसे कर्म ही करता है, इससे सम्पूर्ण जीव अकर्ता ठहरे। जब पुंवेद का उदय आता है उस काल में पुरुष स्त्रीरमण की अभिलाषा करता है और स्त्रीवेद के उदय में आत्मा पुरुषरमण की अभिलाषा करता है । यह आचार्य परम्परा से आई हुई श्रुति है, इसलिये कोई भी जीव हमारे सिद्धान्त के अनुकूल अब्रह्मचारी नहीं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003994
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshprasad Varni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year2002
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy