SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 381
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१० समयसार ग्राह्यस्ततश्चिन्मय एव भावो भावाः परे सर्वत एव हेयाः।।१८४।। __ अर्थ- चित् अर्थात् आत्मा का तो एक चिन्मय भाव ही है। इसके अतिरिक्त जो अन्य भाव हैं वे निश्चय से पर के हैं। अतएव चिन्मयभाव ही ग्रहण करने के योग्य है और इसके सिवाय अन्यभाव सब प्रकार से त्यागने योग्य हैं। भावार्थ- ज्ञानचेतना और दर्शन चेतनारूप जो आत्मा का परिणमन है वह चिन्मय भाव है। यही एक भाव आत्मा का निज में निज के निमित्त से होनेवाला भाव है। अतएव ग्राह्य है और इसके अतिरिक्त आत्मा में जो राग-द्वेष-मोह भाव उत्पन्न होते हैं वे आत्मा में परके निमित्त से जायमान होने के कारण पर हैं। अत: सब प्रकार से हेय हैं-छोड़ने योग्य हैं।।१८४।। . आगे इसी भाव को गाथा में कहते हैं को णाम भणिज्ज बुहो णाउं सव्वे पराइए भावे। मज्झमिणंति य वयणं जाणंतो अप्पयं सुद्धं ।।३००। अर्थ- सर्व परकीय भावों को जानकर ऐसा कौन ज्ञानी होगा जो यह कहते हैं कि वे मेरे हैं क्योंकि ज्ञानी जीव शुद्ध आत्मा को जाननेवाला है। विशेषार्थ- जो पुरुष निश्चय से पर और आत्मा के निश्चित स्वलक्षण के विभाग में पड़नेवाली प्रज्ञा से ज्ञानी होता है वह निश्चय से एक चिन्मात्रभाव को ही अपना जानता है और शेष सभी भावों को पर के जानता है। इस तरह जानता हुआ ज्ञानी जीव परभावों को ये 'मेरे हैं' ऐसा कैसे कह सकता है? क्योंकि पर और आत्मा में निश्चय से स्वस्वामी-सम्बन्ध का अभाव है। अतएव सर्वप्रकार से एक चिद्भाव ही ग्रहण करने योग्य है और शेष सभी भाव त्यागने के योग्य हैं, यह सिद्धान्त है।।३००। यही भाव कलशा में दर्शाते हैं शार्दूलविक्रीडितछन्द सिद्धान्तोऽयमुदात्तचित्तचरितैर्मोक्षार्थिभिः सेव्यतां शुद्धं चिन्मयमेकमेव परमं ज्योतिः सदैवास्म्यहम्। ऐते ये तु समुल्लसन्ति विविधा भावाः पृथग्लक्षणा स्तेऽहं नास्मि यतोऽत्र ते मम परद्रव्यं समग्रा अपि।।१८५।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003994
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshprasad Varni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year2002
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy