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________________ समयसार और इसमें कुछ समय भी लग गया। पर मेरा हृदय इस ग्रन्थ को जहाँ से प्रकाशित करना चाहता था वहीं से इसका प्रकाशन हो रहा है, यह प्रसन्नता की बात है । वर्णीग्रन्थमाला पूज्य वर्णीजी के नाम से सम्बद्ध है तथा उन्हीं के वरद हस्त एवं शुभाशीर्वाद से इसका कार्य प्रारम्भ हुआ था। सर्वप्रथम 'मेरी जीवन गाथा' के नाम से वर्णीजी की आत्मकथा का प्रथम भाग इस ग्रन्थमाला से प्रकाशित हुआ था । उसके बाद वर्णीजी से सम्बद्ध मेरी जीवनगाथा द्वितीय भाग, वर्णी-वाणी ४ भाग आदि अनेक ग्रन्थ और भी इस ग्रन्थमाला ने प्रकाशित किये हैं। वर्तमान में उसके उत्साही मन्त्री श्री डॉ० दरबारीलालजी कोठिया ग्रन्थमाला के संचालन में बड़ा श्रम, समय और मनोयोग देते हैं। प्रूफ देखने आदि का कार्य भी आप नि:स्पृहभाव से स्वयं निपटा लेते हैं। उन्हीं के परिश्रमस्वरूप इस ग्रन्थ का प्रकाशन वर्णी ग्रन्थमाला से हो रहा है,अतः वे धन्यवाद के पात्र हैं। धन्यवाद के प्रकरण में श्री नरेन्द्रकुमारजी का नाम अविस्मरणीय है, क्योंकि उनके प्रयत्न के फलस्वरूप ही यह ग्रन्थरत्न प्रकट हो रहा है। xvi अन्त में इस ग्रन्थ के संपादन में हुई त्रुटियों का उत्तरदायित्व मुझपर है और मैं इसके लिये विद्वत्समाज से क्षमाप्रार्थी हूँ। भावना है कि घर-घर में इसका प्रचार हो और सभी लोग इसके माध्यम से श्रीकुन्दकुन्दस्वामी की देशना को समझने का प्रयत्न करें। Jain Education International For Personal & Private Use Only विनीत पन्नालाल जैन www.jainelibrary.org
SR No.003994
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshprasad Varni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year2002
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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