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प्राक्कथन
प्रस्तुत 'समयपाहुड' (समयसार) श्रीमत्कुन्दकुन्दाचार्यप्रणीत अनुपम अध्यात्मग्रन्थ है। इसकी एक आत्मख्याति नाम की संस्कृत-टीका आचार्य अमृतचन्द्र द्वारा तथा दूसरी तात्पर्यवृत्ति नाम की संस्कृत-टीका, उनके बाद जयसेनाचार्य द्वारा रची गयी है। इसका सर्वप्रथम हिन्दी अनुवाद पण्डितप्रबर जयचन्द्रजी ने किया है। यह अनुवाद अमृतचन्द्राचार्यकृत टीका पर आधृत है। इसका नाम 'आत्मख्यातिसमयसार' है।
समयसार के अध्येता उसकी रचनाकाल के बाद से ही प्राय: अनेक आचार्य होते आये हैं। अनेक मनीषियों ने कुन्दकुन्दाचार्य को अपने ग्रन्थों में बहुमान देकर स्मरण किया है। भगवान् महावीर तथा गौतम गणधर के बाद यदि किसी आचार्य का उल्लेख मंगलाचरण में मंगलप्रदाता के रूप में किया गया हैं तो वह भगवान् कुन्दकुन्दाचार्य का ही है।
यद्यपि धर्मोपदेष्टा अन्य अनेक आचार्य भी हुए हैं तथापि श्रीकुन्दकुन्द का नाम उनके उत्तरवर्ती सभी आचार्यों की जिह्वा पर नृत्य करता आया है।
आचार्य अमृतचन्द्र और जयसेन के उत्तरवर्त्तियों में इस ग्रन्थ के अध्ययन करनेवालों में हिन्दी के कविवर बनारसीदास का नाम विशेष उल्लेखनीय है। इन्होंने अपने “अर्धकथानक" में इसके अध्ययन की चर्चा की हैं। इसके अतिरिक्त कविवर ने “नाटक समयसार" नाम से छन्दोबद्ध रचना करके तो समयसार को हिन्दी जगत में आदृत बनाया है। हिन्दी के जैन कवियों में कविवर दौलतराम, द्यानतराय, भागचन्द्र आदि की रचनाओं में जो अध्यात्म के दर्शन होते हैं वह सब कुन्दकुन्द के समयसार का ही प्रभाव है। प्रतीत होता है कि ये विद्वान् उक्त महान् ग्रन्थ के गहरे स्वाध्यायी थे।
पूज्य श्री १०५ वर्णी गणेशप्रसादजी महाराज ने अपने जीवन के करीब ५० वर्ष इस महान् ग्रन्थ के पारायण में व्यतीत किये हैं। अपने अध्ययनकाल से लेकर मेरा सम्पर्क पूज्य वर्णीजी से था। यद्यपि हमारे न्यायशास्त्र के विद्यागुरु स्व० श्रीमान् आदरणीय पं०अम्बादासजी शास्त्री थे, जो पूज्य वर्णीजी के भी विद्यागुरु थे, तथापि हम अपने सहाध्यायियों के साथ वर्णीजी के पास भी उक्त विषय पढ़ते थे, इस नाते
१. मंगलं भगवान् वीरो मंगलं गौतमो गणी।
मंगलम् कुन्दकुन्दार्यों जैनधर्मोऽस्तु मंगलम्।।
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