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________________ ६१. ध्यान की महिमा. कायोत्सर्ग ध्यान में संलग्न होने पर इस लोक-जीवन में जो फल प्राप्त हुआ, उस पर सुभद्रा का उदाहरण दिया जा रहा है - वसन्तपुर नगर में जिनदास नामक सेठ रहता था। उसकी पुत्री का नाम सुभद्रा था। चम्पापुरी नगरी में बुद्धदास रहता था, वह सुभद्रा के रूपलावण्य को देख कर मोहित हो गया था। वह बौद्ध धर्म का उपासक था। जब उसे यह ज्ञात हुआ कि जिनदास सेठ, जो स्वयं जिनशासन के परम भक्त है, वे बौद्ध अनुयायी को अपनी पुत्री नहीं देंगे। अतः छद्म रूप से वह जैन उपासक बन गया, उसके धार्मिक कार्य-कलापों को देखकर स्वधर्मी जानकर जिनदास ने अपनी पुत्री सुभद्रा का बुद्धदास के साथ विवाह कर दिया। बुद्धदास उसे चम्पानगरी ले कर आ गया। बुद्धदास का सारा परिवार बौद्ध था ही। यहाँ बुद्धदास का कपट भरा व्यवहार भी सामने आ गया। धर्म के प्रश्न को लेकर पारिवारिक कलह भी होने लगा। बुद्धदास ने सुभद्रा को अलग कमरे में रख दिया। सुभद्रा के घर पर भिक्षा के लिए जो भी मुनि-महाराज आते, उनको वह श्रद्धा और प्रेमपूर्वक भिक्षा प्रदान करती थी। उसके सुसराल वालों ने लोगों के सामने यह कहना प्रारम्भ किया – 'यह दुष्टा मुनियों से प्रेम करती है, दूसरे धर्म के साधुओं को अनादर दृष्टि से देखती है।' इस प्रकार के आरोप लगने पर भी वह सुभद्रा साधुजनों की भक्ति से विमुख नहीं हुई। एक दिन ऐसा संयोग उपस्थित हुआ कि एक श्रमण सुभद्रा के यहाँ गौचरी के लिए आए। मुनिराज के आँखों में कोई फांस गिर गई थी, उसे सुभद्रा ने अपनी जबान से फांस को आँख से निकाल दिया। फांस को निकालते समय सुभद्रा का ललाट मुनि के ललाट को छू गया और सुभद्रा का तिलक मुनि के ललाट पर उसकी छाप छोड़ गया। सुभद्रा के ससुर ने यह दृश्य आँखों से देखा और उसे मौका मिल गया। उसने उसे दुराचारिणी बता दिया। इस घटना से उसका पति बुद्धदास भी उससे विरक्त हो गया। 86 शुभशीलशतक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003993
Book TitleShubhshil shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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