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ऐसा विचार कर स्तम्भ तीर्थ की आलिंग वसति में पुण्य हेतु धर्मशाला बनवाई। इस कार्य में भीम में १४०० टंक खर्च किए। उस समय किसी एक ने भीम से कहा - शाला के निर्माण में तुमने बहुत धन खर्च किया है, किन्तु यह शाला नगर से बाहर है। यहाँ इतनी दूर आकर कौन धर्म की आराधना करेगा?
भीम ने उत्तर दिया - कदाचित् प्रातः, मध्याह्न या रात्रि में कोई भी पथिक अथवा कोई भी व्यापारी आकर ठहरेगा और उसमें से कोई भी वहाँ रहकर एक भी सामायिक करेगा तो मैं इस शाला के निर्माण धन से अधिक असीम धन का उपार्जन करूँगा। कहा भी है
सामाइयंमि उ कए, समणो इव सावओ हवइ जम्हा। एएण कारणेणं, बहुसो सामाइअं कुजा।।
अर्थात् - सामायिक ग्रहण की अवस्था में रहता हुआ श्रावक भी श्रमण के समान होता है। इस कारण के अधिक से अधिक सामायिक करनी चाहिए।
सामाइअं कुणंतो, समभावं सावओ घडीदुग्गं।
आउं सुरे सुबंधइ, इत्तीमित्तई पलिआई॥
अर्थात् - सामायिक करते हुए श्रावक यदि दो घड़ी के लिए भी समता भाव (समत्व) की दशा को प्राप्त हो जाता है तो देवता के आयुष का भी बंधन कर लेता है और उसे श्रेष्ठ पत्नी, मित्र आदि भी प्राप्त हो जाते हैं।
बाणवइकोडीओ, लक्खा गुणसट्ठि, सहसपणवीसा। नवसय पंचवीसाए, सतिहा अडभाग पलिअस्स॥
अर्थात् - समत्व की दशा में रहते हुए एक सामायिक का लाभ बाणवें करोड़, उनसठ लाख, पच्चीस हजार, नौ सो पच्चीस द्रव्य से अधिक सामायिक का लाभ कहा गया है।
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शुभशीलशतक
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