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________________ राजा यह देववाणी सुनकर चमत्कृत हुआ और सारे कुंभों को पुण्यसार के घर में देखकर बोला - हे सेठ! तुम धन्यशाली हो, भाग्यशाली हो, जिसके कारण इस प्रकार की सम्पत्ति देवता भी तुम्हारे यहाँ स्थापित कर रहे हैं। तत्पश्चात् राजा ने सेठ का सत्कार-सम्मान किया और नगर सेठ की पदवी दे कर बड़े आडम्बर के साथ हाथी पर बिठाकर उसको अपने निवास स्थान पर भेजा। यह घटना देखकर नगर की जनता भी कहने लगी- 'लक्ष्मी भी पुण्यशालियों का अनुगमन करती है।' इधर वह पुण्यसार सेठ भी सात क्षेत्रों में उस धन का सदुपयोग करने लगा। एक समय साकेतनपुर नगर में केवलज्ञान-धारक आचार्य सुनन्द का पदार्पण हुआ। नगर के भूपति, श्रेष्ठि पुण्यसार एवं समस्त जनता उनके दर्शनों के लिए गई। दर्शन कर धर्मोपदेश सुनन लगे। धर्मदेशना के पश्चात् पुण्यसार के पिता सेठ धनमित्र ने हाथ जोड़कर निवेदन किया - भगवन् ! मेरे पुत्र ने पूर्व जन्म में ऐसा कौन सा सुकृत कार्य किया, जिसके कारण इस भव में महालक्ष्मी देवी चलकर के हमारे घर में निवास करने लगी। केवलज्ञानी आचार्य ने कहा - इसी नगर में धन नाम का मनुष्य रहता था। सद्गुरु के पास में अहिंसा प्रधान धर्म का श्रवण कर शुद्ध धर्म अंगीकार कर प्राणपण से अहिंसा का पालन किया। मुनिजनों को विशुद्ध आहार का दान दिया और अन्त में गुरु महाराज के पास दीक्षा ग्रहण की। मुनि बनने के पश्चात् वह सर्वदा सिद्धान्तों के अध्ययन-अध्यापन में और गुरुजनों की सेवा करने में तत्पर रहा । अन्तिम अवस्था में अनशन धारण कर देह-विलय होने के पश्चात् तीसरे देवलोक में महर्द्धिक देव हुआ। देव-भव का आयुष्य पूर्ण कर पूर्व पुण्य योग से तुम्हारे पुत्र के रूप में उत्पन्न हुआ है। केवली भगवान् के मुख से अपने पूर्व-जन्म का वृत्तान्त सुनकर पुण्यसार को भी जाति-स्मरण ज्ञान हुआ। तत्पश्चात् वह पुण्यसार विशेष रूप से शत्रुञ्जय आदि महातीर्थों की यात्रा में अपनी लक्ष्मी का सदुपयोग करने लगा। अपने पुत्र की पुण्यशालिता देखकर उसका पिता भी विशेष धर्म कार्य शुभशीलशतक 127 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003993
Book TitleShubhshil shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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