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________________ अपनी पत्नी का दीवाना बना हुआ वह पानी लेने चला। मार्ग में सिंह को देखा, भयभीत हुआ पर अपने जीवन को तृण के समान समझकर तालाब पर पहुँचा। पानी लेकर वापिस अपनी पत्नी के पास आया। उस समय तक पत्नी प्यास की बेचैनी के मारे बेहोश हो गई थी। उस पर जल छिड़काव आदि किया और उसके होश में आने पर उसने पानी पीया। ___ वहाँ से वे दोनों आगे चले । चलते हुए वे दोनों किसी नगर के समीप पहुँचे। नगर के बाहर कुएँ पर अपनी भार्या को बिठाकर भोजन की व्यवस्था करने के लिए वह चन्द्र नगर में गया। इधर उस कुएँ के समीप ही एक पांगला कोढ़ी बैठा हुआ था। उसने एकाकी नारी को देखकर उसको मोहित करने के लिए राग-जनित चेष्टाएँ की। उसकी चेष्टाओं से प्रभावित होकर वह रूपश्री भी उस पर आसक्त हो गई और अपने पूर्व पति को भूल गई, जैसे उसके साथ किसी प्रकार का सम्बन्ध ही न रहा हो। रूपश्री ने उस पंगु से कहा - आज से तुम ही मेरे पति हो। उत्तर में कोढ़ी ने कहा - हे सुन्दरी ! तुम क्या कह रही हो, कहाँ तुम्हारी जैसे सौन्दर्य एवं लावण्यवत्ती नारी और कहाँ मेरे जैसा पंगु और कोढ़ी? उसी समय चन्द्र भोजन की व्यवस्था करके वहाँ आ गया। पत्नी के कहने पर उसने भोजन के तीन हिस्से किये। एक स्वयं के लिए, दूसरा पत्नी के लिए और तीसरा पंगु के लिए। भोजनोपरान्त पत्नी के आग्रह के कारण उस पंगु कोढ़ी को भी साथ लेकर चले। वह पंगु कोढ़ी चलने में असमर्थ था, अत: कुछ समय चन्द्र अपने कंधे पर बिठाकर चलता था और कुछ दूरी तक वह रूपश्री अपने कंधे पर बिठाकर चलती थी। ये लोग चलते हुए किसी नगर में पहुँचे। वहाँ नगरजनों के समक्ष रूपश्री ने त्रिया चरित्र का नाटक रचा और लोगों से कहने लगी- देखो! देखो! मेरा पति तो यह पंगु कोढ़ी है। यह नवयुवक तो मुझे अबला जानकर मेरा हरण करना चाहता है। 124 शुभशीलशतक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003993
Book TitleShubhshil shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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