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________________ काम निकालता था। एक दिन रात्रि में सोते हुए पड़ोस के घर में थापी के आधार पर रोटियों की गणना की । प्रातः काल उसने पड़ोसी के यहाँ पूछा 'क्या आपके यहाँ आज इतनी रोटियाँ बनी है?" बात सत्य थी। टीडा भविष्यवक्ता के रूप में प्रसिद्ध हो गया । एक समय कुम्हार का गधा घूमते हुए जंगल की ओर निकल गया । कुम्हार ने ढूंढा उसे नहीं मिला, तब उसने भविष्य वक्ता मान कर टीका के समक्ष कुछ धन भेंट कर पूछा- मेरा गधा कब मिलेगा ? करके टीडा ने कहा- मिल जायेगा, चिन्ता क्यों करते हो ? रात्रि को गणना सुबह बताऊंगा । रात्रि में जंगल में घूम कर गधे का पता लगाया और सुबह कुम्हार को कहा दिया गधा उस जंगल में उस स्थान पर मिलेगा। इस भविष्यवाणी से लोगों में उसकी प्रसिद्धि बहुत ज्यादा हो गई । किसी के अमूल्य हार की चोरी हो गई थी, खूब ढूंढने पर भी वह हार नहीं मिला था । हार के मालिक ने पंडित टीडे के चरणों में गिरकर निवेदन किया - महाराज ! मेरा अमूल्य हार चोरी हो गया है, खोजबीन करने पर भी पता नहीं चल रहा है, आप कृपा कर अपने ज्ञान से बतायें कि वह हार मुझे कहाँ मिलेगा? हार मिलने पर मैं आपके चरणों में विशेष भेंट भी रखूंगा । टीडा ने कहा - 'रात्रि को गणना कर सुबह बताऊंगा।' रात को उसने सोचा- 'मैंने क्या बेवकूफी की? मुद्रा के लोभ से मैंने हार की खोज का भार अपने ऊपर ले लिया। हार का पता नहीं लगा तो मेरे इज्जत मिट्टी में मिल जायेगी । ' इसी चिन्ता के चलते हुए उसे अपनी झोपड़ी में नींद नहीं आई। बारम्बार 'मुद्राहार, मुद्रा - हार' यहीं शब्द उसके मुख से निकलते रहे । सेठ की एक दासी थी, जिसका नाम मुद्रा था । उसी ने हार की चोरी की थी। टीडा की ख्याति से वह भयभीत हो गई थी। रात को चोरी-छिपे झोंपड़े के बाहर आकर टीडा की गतिविधि देखने लगी। टीडा के मुख से 'मुद्रा - हार', यह शब्द सुनकर वह घबरा गई। 'अरे! इसने तो मेरा नाम भी शुभशीलशतक Jain Education International For Personal & Private Use Only 95 www.jainelibrary.org
SR No.003993
Book TitleShubhshil shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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