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________________ पासिल ने इस पुण्य लाभ से स्वर्ग सुख को प्राप्त किया और भविष्य में वह सिद्ध-स्वरूप को प्राप्त करेगा। ६४. फलवर्द्धि पार्श्वनाथ तीर्थ. एक समय श्री देवसूरिजी महाराज मेडता ग्राम में चातुर्मास करके फलवर्द्धि ग्राम में मास कल्प के लिए ठहरे। वहाँ के पारस नाम के श्रावक ने एक दिन जाल के मध्य में निर्मल अम्लान पुष्पों से पूजित पत्थरों की राशि को देखा, आश्चर्य हुआ। गुरु महाराज से पूछा । गुरु महाराज के आदेशानुसार पत्थरों को हटाने पर भगवान् पार्श्वनाथ की मूर्ति देखी। शासन देवता ने स्वप्न में उसे कहा - तुम भगवान् पार्श्वनाथ का नया मंदिर बनवाओ। ___ पारस श्रावक ने शासन देव से निवेदन किया - मैं अत्यन्त गरीब हूँ, मेरे पास धन नहीं है, अत: मैं मंदिर कैसे बनवा सकता हूँ? शासन देव ने कहा - प्रतिदिन भगवान् के सम्मुख चावलों के द्वारा मेरे द्वारा निर्मित स्वस्तिक ही तुम्हारे लिए अक्षत सुवर्ण के रूप परिवर्तित हो जायेंगे, उसी धन से तुम मन्दिर बनवाओ। देव वाणी पर विश्वास करके अक्षत स्वर्णों के माध्यम से मन्दिर का निर्माण प्रारम्भ किया। मन्दिर बन गया और मन्दिर के एक ओर मण्डप आदि का निर्माण भी हो गया। धन-रहित होने पर भी पिताजी यह कार्य कैसे कर रहे है? पुत्र के हृदय में संदेह पैदा हुआ और उसने अपने पिता पारस से पूछा। पारस श्रावक सरल स्वभावी था, उसने सारी घटना बतला दी। दूसरे दिन वह चावलों द्वारा निर्मित स्वस्तिक स्वर्ण के रूप में परिवर्तित नहीं हुआ। धन के अभाव में मंदिर का निर्माण अधूरा ही रहा। पूर्व में जितना बना था, उससे आगे नहीं बढ़ सका। विक्रम सम्वत् ११९९ फाल्गुन सुदि १० के दिन भगवान् की मूर्ति की स्थापना हुई और वि०सं० १२०४ माघ सुदि १३ को कलश, ध्वज 92 शुभशीलशतक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003993
Book TitleShubhshil shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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