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________________ -१० इन्हीं नामों में प्रवृत्ति यह भी ज्ञात होती है कि विवाह के उपरांत स्त्रियों के नाम पति के नाम के अनुसार परिवर्तित हो जाते थे । पितृ गृह में कन्या का जो नाम होता था वह 'पैतृक नाम' कहलाता था और बह नाम पति के घर में आकर बदल दिया जाता था । जैन पुस्तक प्रशस्ति संग्रह के सं० १३२८ की एक प्रशस्ति में इसका पक्का प्रमाण इस प्रकार उपलब्ध होता है " श्रेष्ठ वीरदेव पत्नी वीरमति मोल्ही इति पैतृक नाम । " + ( जैन पु० प्रश० सं० पृ० ८ ) प्रतिष्ठा लेख संग्रह में भी चौदहवीं शती के कई लेखों से यही बात प्रकट होती है । जैसे सं० १३६४ के एक लेख में श्रे० ( श्रेष्ठि ) महणा भार्या महणादे (ले० सं० १९० ) । अवथा संवत् १३६२ के दूसरे लेख में श्रे० खीमसीह भार्या खीमसरि अथवा लेख सं० १६५ में श्रेष्ठिसुत नागसह अपने पिता का नाम राजा और माता का राजदेवि लिखता है । लेख १६= में साहु ललता की भार्या ललतादे, उसके पुत्र लखमा की भार्या लाख दे, लेख २०२ में आसक की भार्या आसलदे इसी प्रथा के कुछ अन्य उदाहरण हैं । इस प्रकार यह बात विचारने योग्य हो जाती है कि पति के नाम के अनुसार पत्नी के नाम के परिवर्तन की प्रथा भारतीय व्यक्तिगत नामों के इतिहास में कब से प्रारम्भ हुई और कब तक जारी रही । हरिषेण कृत बृहत्कथाकोष में भी इसका उदाहरण आया है, जहाँ सोमशर्मा की पत्नी का नाम सोमश्री रखा गया है ( पृ० ३१७ ) । वस्तुतः नामों के अनुसंधान का यह एक ऐसा विषय है जिसमें साहित्य ग्रन्थों की प्रशस्तियाँ शिलालेख और तांबे पीतल की मूर्तियों पर खुदे हुए लेख इन सबकी सामग्री एक ही सांस्कृतिक पृष्ठ भूमि का चित्र हमारे सम्मुख रखती है । अतएव एक से दूसरे का समर्थन होता है । अध्ययन के ये नए नए दृष्टिकोण तभी संभव हैं जब मुनि जिन विजय जी एवं उपाध्याय श्री विनय सागर के सदृश भौलिक संग्रह का कार्य हमारे सम्मुख इतने सुंदर और सुविधा जनक रूप में किया गया हो । जैन धार्मिंक संघ का सांगोपांग इतिहास अनेक आचार्य और उनकी गुरु शिष्य परम्परा एवं नई नई गद्दियों के इतिहास निर्माण के लिये प्रशस्ति और मूर्ति इन दोनों की सामग्री अनमोल कही जा सकती है । किसी दिन इस विषय का भी पर्याप्त अनुसंधान किया जायगा ऐसी आशा है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003983
Book TitlePratishtha Lekh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherVinaysagar
Publication Year
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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