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________________ प्राचीन लेखनकला और उसके साधन १. ताड़पत्र, कागज आदि ताड़पत्र-ताड़ के वृक्ष दो प्रकार के होते हैं : (१) खरताड़ और (२) श्रीताड़ । गुजराती भूमि पर जो ताड़ के वृक्ष आज विद्यमान हैं वे खरताड़ किस्म के हैं । इस वृक्ष के पत्र स्थूल, लंबाई-चौडाई में छोटे एवं नये होने पर भी सहज टक्कर या धक्का लगने पर टूट जाने वाले अर्थात् बरड़ होते हैं । इस लिए पुस्तक लेखन में इनका उपयोग नहीं किया जाता । श्रीताड़ के वृक्ष मद्रास, ब्रह्मदेश आदि में प्रचुर मात्रा में होते हैं । इनके पत्ते श्लक्षण, लंबे, चौडे तथा सुकुमार होने के कारण मोड़ने पर भी टूटने का भय नहीं रहता है । कुछ ताड़पत्र श्लक्षण तथा लंबे-चौड़े होने के बावजूद थोड़े बरड़ (कड़क) होते हैं, लेकिन उनके स्थायित्व के बारे में शंका करने की आवश्यकता नहीं रहती । इन श्रीताड़ के पत्रों का ही पुस्तक लिखने हेतु उपयोग किया जाता था और आज भी उन-उन देशों में पुस्तक लिखने हेतु इनका उपयोग किया जाता है। कागज-जिस प्रकार आजकल भिन्न-भिन्न प्रदेशों में भिन्न-भिन्न जाति के कागज बनते हैं, उसी प्रकार पुरातनकाल में तथा अद्य पर्यन्त हमारे देश के दरेक विभाग में जरूरत एवं खपत अनुसार भुंगळिया, साहेबखानी आदि अनेक प्रकार के कागज बनाये जाते थे और उनमें से जिसे जो अच्छे तथा टिकाउ लगते उनका वे पुस्तक लिखने हेतु उपयोग करते थे । परन्तु आजकल हमारे गुजरात में पुस्तक लेखन हेतु अहमदाबादी तथा काश्मीरी कागज का ही उपयोग किया जाता है । इसमें भी अहमदाबाद में बननेवाले कागज का उपयोग प्रमुखरूप से किया जाता है, क्योंकि काश्मीर में जो अच्छे और टिकाऊ कागज बनते हैं उनको वहाँ के स्टेट द्वारा अपने दफ्तरी काम हेतु ले Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003982
Book TitlePrachin Lekhankala aur Uske Sadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Uttamsinh
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2009
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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