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________________ इधर क्षमा थी उधर क्रोध साधना करते हुए अविराम महावीर पहुंचे-अस्थि ग्राम ग्राम के निकट यक्ष-मठिदन को साधना-स्थल बनाया तभी उस का पुजारी आया बतलाया“यह एक दुष्ट यक्ष का निवास है उसे मानव-रक्त की प्यास है वह इस गाँव को सचमुच अस्थियों से भर चुका है कइयों की हत्या कर चुका है। आप अपने प्राण व्यर्थ न गँवाएँ साधना के लिये अन्यत्न कहीं जायें महावीर ने सब कुछ सुना परन्तु साधना हेतु यक्ष-मदिन ही चुना सचमुच ! देह-विसर्जन मनुष्य को पौरूष से भन देता है पूरी तरह यक्षायतन में देह-विसर्जित महावीर के पराक्रम को ध्यानलीनता ने छुआ सूर्यास्त हुआ पहन रात बीते यक्ष आया महावीर को देनव भयानक अट्टहास गुंजाया यक्षायतन की कॉप उठी एक-एक दीवार उसने भनी पशु-पक्षियों तक को दहला देने वाली ਤ जिस से काल पर भी कहन छाया पर उसका आतक प्रकाश-पर्व : महावीर /76 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003981
Book TitleTirthankar Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication New Delhi
Publication Year1998
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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