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मदमस्त हाथी के भाव
और किस में है मेरे जितना बल पिन भी में परतत्र रहता हूँ महावत के अकुश सहता हूँ नहीं सगा अब अन परतत्र नहीं नींगा
मुझे क्या बस में करेंगे ये तिनकों जैसे लोग सब को है कायरता का रोग
इनके लिये तो मूड की एक पुकार ही कापी है
प्रकाश-पर्व : महावीर /45
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