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दौड़ते-दौड़ते अपने अकार को करता गया बड़ भीमकाय दैत्य हो गया अंतत: पर पिन भी नहीं डमा वह
लम्बे नुकीले तीनवे ठाँत और नानवून दीनवे झाड़-इसवाड़ से बाल अनवे गारों-सी लाल
बालक भाग मवड़े हर पर कमाल वीर ने किया मेरे कंधे पर मुष्टि-प्रहार मेसे गोम-रोम में दर्द की लहर वातावरण में मेला चीत्कार
हड्डियाँ हो रही थीं विकल मैंने जानावीन का अतुलित बल
प्रकाश-पर्व : महावीर /37
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