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और मुझे दून छोड़ आया
मुझे लगा कि वर्षमान नहीं है यह यह तो वीर है
पन मन था कि मानता ही नहीं था
वीर से अभय पाये बालक पुनः नवेलने लगे तिळूषक मैं भी बालक बन जा मिला उन में साने भागे पर वीर सब से अगे वह पेड़ को सबसे पहले छू अया वह जीत गया तो मैंने उसे कंधे पर बैठाया और दौड़ पड़
प्रकाश-पर्व : महावीर /36
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