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मां त्रिशला की जिज्ञासा
मुझे सब कुछ मिला सम्रटअसीम स्नेह अनन्त नवुशियाँ वेभव विसाट
मैंने सब कुछ देनवा महाराजसागर
पर्वत
नदियाँ
समाज
सचमुच एक से एक किमय विमुग्धकानी दृश्य भने हैं इस सम्मान में पर बन्छ अनवों से जो कुछ अज रात मैंने देउवा उसे देलव कर पाया देवने का सच्चा अर्थ, उसके बिना साना का साना देसवना व्यर्थ
पहले ऐसा कमी नही हुआ था ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था कि सोते सोते मेला अस् जगे, मुझे सचमुच की दुनिया मिथ्या और सपनों की दुनिया सच्ची लगे
वे निरे स्वप्न नहीं थे मष्ठानाज ! तभी तो
प्रकाश-पर्व : महावीर /14
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