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प्रक
जगह-जगह घूम-घूम कर करते रहे धर्म-चक्र-प्रवर्तन तीस वर्ष तक देते रहे जन-जन को हितकारी शिक्षाये
उनके धर्म-संध में थेचौक हज़ार साधु छत्तीस हजार साध्वियों एक लानव उठसठ हज़ार श्रवक और तीन लालव अठारह हज़ार श्रविकाये प्रभु पाद प्रणति से अमृत बोध को पायें ॥
प्रकाश-पर्व : महावीर /123
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