________________
ये फन
अब कभी बाहर नहीं आयेगा
उधर
ग्वाल-बाल
पहुँचे भय लिये दिल में
देख कर आश्चर्य हुए
साँप का शरीर महावीर के चरणों में
और मुँह बिल में !
गाँव वालों से वृत्तान्त कहा गया सुन कर
उन से भी न रहा गया
वे पहुँचे
तब तक जा चुके थे महावीर
उसी तरह पड़ा था सर्प का शरीर
जब सभी आश्वस्त हो गये
कि यह अब किसी को कुछ नहीं कहेगा
यूँ ही
Jain Education International
चुपचाप पड़ा रहेगा तो उन्होंने उसे
'नाग देव' मानकर पूजा शुरू कर दी बॉबी के आसपास की जगह
दूध, दही, घी, आदि से भर दी
उनकी गंध से वज्रमुखी चीटियां आने लगीं सर्प को नोचने-काटने-खाने लगीं
असहय वेदना ने उसे
पल-पल आहत किया
पर महावीर के जगाये जागा था वह उसने कभी भूलकर
क्रोध को कष्ट नहीं दिया
हर स्थिति में सम-भाव
हर स्थिति में दया
कर्मों की होती रही निर्जरा
देह विसर्जित कर
वह 'सहस्रार' नामक देवलोक में गया
सचमुच !
साधना की सीप में पलता है
मुक्ति का मोती
ज्ञान की कृपा हो जाये
तो आत्म-कल्याण में देर नहीं होती ।
प्रकाश पर्व : महावीर / 90
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org