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नस-नस में करुणामृत बहता
के ने आत्मा को प्रभावित किया आत्मा को देह ने सुनव-दु:नव की अनुभूति नवो गई महावीर की देऊ साधना से कुठदन हो गई
उत्तर वाचाला वन की ओर अढते महावीर ने निठानाग्वाल-बालकों ने पीछे से पुकारा "उधर मत जाओ भिक्षुक !
इधर आओ उधर तो चण्डकोशिल साँप का कहन है उसकी (फकार में उड़ते पछियों को भी नवींच कर मान देने वाला ज़हन है वह एक नज़न देनव लेता है जिस किसी को तत्काल प्राण गँवाने पड़ते हैं उसी को उसके क्रोध से कोई नहीं बचा आज तक आप अपने को बचाइये। उस तरफ मत जाइये।"
विव्ह महावीर के पास कहाँ से आता भय यह सुन कर तो ओर दृढ हो गया उसी रास्ते से जाने का निश्चय जिसका इतना भयानक नवींचा गया चिन्न उसी सर्प को कहा मष्ठावीन ने
प्रकाश-पर्व : महावीर /83
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