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दी गई है। देशमें प्रकाशित होनेवाले हिन्दी साहित्यके अनेक ऐतिहासिक ग्रंथ देखने को मिल जाते हैं पर उसमें हिन्दी जैन साहित्यको छोड़ दिया है या साधारण का संकेत करके आगे बढ़ गये हैं। अथवा दो चार जैन कवियों के नाम देकर इतिहासकारने अपने कर्तव्यको इतिश्री मान ली है। __जैन साहित्यके साथ यह उपेक्ष वृत्ति डॉ० साहब सहन न सके। अतः साहित्यको परिपूर्ण बनानेके लिये जैन साहित्यके समावेशकी सम्मति प्रकट की गयी। "यह देखकर हमें आश्चर्य होता है कि हमारे हिन्दी इतिहास लेखक विविध हिन्दू सम्प्र. दायोंके कवियों और उनके साहित्यका उल्लेख करते हुये उनमें सम्प्रदायवादको गन्ध नहीं पाते, किन्तु जैन साहित्यमें उन्हें साम्प्रदायिकता नजर आती है। वे यह भूल जाते हैं कि हिन्दी साहित्यकी परिपूर्णता जैनियोंके हिन्दी साहित्यका समावेश किये बिना नहीं हो सकती।" ___ साहित्य जिस उद्देश्यको लेकर चलता है वह आत्मोद्धार ही प्रमुख रूपसे है। साहित्यके अध्ययनसे बुद्धिकी कुशलता रद जावे यह कोई प्रमुख वक्ष्य नहीं है। हां, इसे गौणरूप प्रदान किया जा सकता है, क्योंकि जबतक अपनी आत्माका ज्ञान करानेवाला साहित्य न हुआ तबतक वह कलमकी कसा त मात्र ही रह सकती है। मुक्तिका संदेश देनेवाला साहित्य जेन साहित्य है। यहांसे भी बहुत कुछ सीखा जा सकता है । बाबूजीने स्पष्ट ही कहा है कि, जैन साहित्यके अध्ययनसे व्यक्तिको अपने भाग्यका निर्माण स्वयं करनेका अवसर, स्वावलम्बनकी शिक्षा, स्वाधीन होकर जीने और दूसरों को जीने देने की हृदयको विशाल
और उदार बनाने में सहायक साम्प्रदायिकताकी संकीर्ण गलीसे निकालनेका प्रयाग, अहिंसाभावको जागृति, प्रेम और सेवा जैसी
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