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________________ ( १६२) परम तत्वज्ञ: आज हम आपको अपने बीच पाकर पलाधिक हर्षित एवं गौरवान्वित हैं। आज जैन धर्म एवं वीर-चाणोकी जागरूक प्रसारक संस्थाके संचालकके रूपमें आपने जो अद्वितीय स्थान प्राप्त किया है वह आधुनिक जैन इतिहासमें परम उल्लेखनीय सन्दर्भ है। अपने विद्वत्तापूर्ण लेखों, ट्रेक्टों एवं ग्रन्थों में जो खोजपूर्ण एवं गहन सामग्री आपने प्रस्तुत की है वह न केवल जैन धर्मके विशद तत्वोंका बिवेषन है वरन उनसे जनसाधारणको ग्राह्य अनूठे दार्शनिक एवं आध्यात्मिक विषयों की प्राप्ति होती है। उद्भट् साहित्य-सृजेता : - अपने सहन निगूढ अध्ययन, चिंतन एवं तत्वज्ञानके द्वारा आपने जो जैन साहित्य-सामग्रो प्रस्तुत की है वह आज भी पूंजी प्रमत्त जनताके मध्य जैनदर्शन एवं अध्यात्म ऐसे गूढ विषयों को बोधगम्य करने में पूर्ण सफल है। - अ० वि० जैन मिशनका संस्थापन कर जैनधर्मके सर्वभौम सिद्धांतों एवं दर्शनके प्रचार-प्रसारका जो जटिल कार्य आपने अपनाया है वह आज पीड़ा एवं क्रन्दनके इस युगमें शांति एवं सगहनाका प्रदायक है। यू० एन० ओ०, मास्को, न्यूयार्क, लंदन, पेरिस, नई दिल्लो सम आधुनिकता एवं ऐश्वर्य में डूबे बाजके इस प्रताड़ित युगमें अलीगंज (एटा)के शांत, नीरव ग्राम्य वाता. वरणमें एकांत पथिककी मूक साधना-रत होकर आपने जो विश्वके आध्यात्मिक एकीकरण सहित विश्वबन्धुत्व तथा विश्वमैत्री सदृश्य मानव कल्याणकारी अमर संदेशोंको जागरूक रखनेका : घोड़ा उठाया है वह बापकी जीवन्त कर्मशीलताका उदाहरण है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003978
Book TitleKamtaprasad Jain Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnarayan Saxena
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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