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भरणालीत तारा
जाता है। बाबूजीकी माता भगवन्तीदेवीने जैन धर्मकी विचारधारा सिद्धान्त और शिक्षाओं की अमिट छाप डाली।
जिस तरह सूर्य की किरणें चन्द्रमा पर पड़ती हैं और उसके दिव्य, और शीतल प्रकाशसे जनता जनार्दन लाभान्वित होती रहती है, ठीक वैसे ही माताजीकी दिव्य भाभाका जो प्रतिबिम्ब बाबूजी पर पड़ा, उससे सारे अज्ञानाडोकको एक ज्ञानज्योति मिल सकी। बाबूजी द्वारा प्रज्वलित की गई और जानकी अखण्ड ज्योति तब तक इस मूलोक पर प्रकाश और प्रेरणा देती रहेगी, जबतक एक भी धर्मनिष्ठ, कर्तव्यपरायण, और सत्य प्रेमी जीवित रहेगा। बाबूजीका बचपन सिंध हैदराबाद में व्यतीत हुआ, जब वे "नवडराम हीराचन्द एकेडेमी" नामक विद्यालयमें शिक्षा ग्रहण करते थे। वहां सिख धर्मकी शिक्षाका बोलपाता था, उसके बीच निर्भयता और साहमसे 'सामायिक पाठ' और जैन स्तोत्रोंको बड़े भावसे सुनाया करते थे।
इनके पूर्वज उत्तर प्रदेश प्रान्त के एटा जिले में तहसील अलीगंजके अन्तर्गत कोट प्रामके थे। यह प्राम अलीगंजसे दक्षिणकी बोर लगभग ३ मील दूर है। उस समय ब्रिटिश शासनके द्वारा इस परिवारको विशेष सम्मान भी मिला हुआ था। पादको धीरे२ गांव छोडकर लोग अलीगंजमें बाकर बस गये। इस परिवार की ४ पीढ़ीकी वंशावली इस प्रकार है। इस वंश वृक्षसे विस्तृत जानकारी पाठकोंके लिए विशेष लाभान्वित सिद्ध होगी, ऐसा मुझे विश्वास है
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