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प्रचारके दृढ़ स्तम्भ सचमुच में बाबूजी इस युगमें जैन धर्म प्रचारके दृढ़ स्तम्भ थे खासकर विदेशों में जैन धर्म प्रचार बाबूजीके ही निमित्तसे वर्तमानमें चल रहा था...... वर्तमान युगमें जैन धर्मके प्रचारका चमकता हुमा सूर्य नष्ट हो गया। निवाई (जयपुर)
पं० इन्द्रजीतसिंह जैन आयुर्वेदाचार्य, न्यायतीर्थ
- शत्रुओं तकके मित्र जैन मन्देशका पहला सफा देखकर ही अखबार हाथसे छूट पड़ा। स्वाबमें भी यह ख्याल न था कि जैन समाजके परम हितैषी इतिहासके सूर्य जिनवाणी व बायस आफ अहिमाके विद्वान सम्पादक बाल बड़े जैन मिशनके डायरेक्टर शत्रु कों सकके मित्र श्री कामताप्रसादजीको जालिम मल्कुल मौत विना कहे इतनी जल्दी हमारे बीचसे खींचकर ले जायेगा ।...... समाजसेवा देश विदेशों तक धर्मभावना, देशभक्तिका सिका न केपल मेरे बल्कि मेरे मित्रों पर बैठा हुआ था। महारनपुर
दिगम्बरदास मुख्तार
उत्कृष्ट श्रद्धा उनमें अमृत उत्साह शक्ति थी। धर्म प्रचारकी उत्कृष्ट श्रद्धा थी, जिनवाणीकी असीम भक्ति थी। साहित्य प्रचारकी बकोटिकी हगन थी। जैन इतिहासका परिशीलन मनन उनका मन चाहा विषय था। घर-घरमें जन जनमें कैसे बीतराग शासनका रहस्य पहुंचे यह उनकी भावना थी। उदीयमान ।
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