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________________ ( १३६ ) निष्पक्ष ठोस विद्वान समाजसेवी श्री कामताप्रसादजीका देहावसान वस्तुत: जैन जगत के लिये ही नहीं बल्कि अखिल विश्वके लिए एक असाधारण क्षति है...... अपनी अपार विभूतिको तृणवत त्यागकर जिनवाणी प्रचार तथा अहिंसा प्रचार में वे इतने तल्लीन थे कि परोपकार और आत्मीयता में सहज ही अंतर नहीं परखा जा सकता था । वस्तुतः वे एक कर्मठ लगनशील, साहित्यिक, जिनवाणी भक्त, इतिहास वेत्ता तथा नवीनतम दृष्टिकोणवाले एक विज्ञान वेत्ता थे । समाज सेबी होते हुवे भी वे एक निःस्पृह तथा निष्पक्ष ठोस विद्वान थे। जिन्हें नामसे नहीं कामसे प्रयोजन था । D म०प्र० शाखा खुरई (सागर) मानकचंद बड़कुल अध्यक्ष 'प्रादेशिक शाखा' ★ वे सच्चे चारित्रशील श्रावक थे। जिन प्रोक्त सिद्धान्तोंके गम्भीर अभ्यासी एवं अंतरंग श्रद्धालु थे । उन्होंने इन अकाट्य सस्य एवं परमानन्दमय तत्वोंको स्वयं जीवन में आचरित कर अपनी आत्माको तो धन्य, उज्ज्वल एवं रचसे उच्चतर बनाया ही पर साथ साथ जन-समाज भी इस अमृतपान से वंचित न रहे इसका जी जान से जीवनभर प्रयत्न किया। उनके सारे आचार विचार एवं क्रिया कलाप इस बातके पुरावे हैं। इस मान आत्मा के जीवनका एक मात्र उक्ष्य यह था कि स्वयं परमानन्द वा मोक्षमार्गका चारी बनना एवं औरोंको भी, उस पक्षका पथिक बनाना परमानन्दका भागी बनाना । धन्य है ऐसा पवित्र जीवन । श्वेताम्बर दिगम्बर पक्षोंकी एकता की दिशा में मैं भी उनकी सद्भावना एवं चेष्टा विशेषतया उल्लेखनीय है । कलकत्ता हरखचन्द्र बोथरा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003978
Book TitleKamtaprasad Jain Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnarayan Saxena
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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