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जिनवाणी-विशेषाङ्क सभी अन्धों ने अपने नोटों के बंडल, अपने विश्वस्त भक्त को दे दिये। भक्त ने गुरुवर्ग की पिटाई करवाने और आपस में ही लड़ा-मारने के लिए एक युक्ति रची। उन सभी अन्धों की झोलियों में पत्थर भरवा दिये और कहा_ 'यह चोर-लुटेरों का ही स्थान है। चुपचाप चलते रहिए। कोई किसी से कुछ भी नहीं बोले। यदि कोई निकट आकर मीठी-मीठी बातें करने का प्रयत्न करे, तो आप विश्वास नहीं करें और पत्थर मार कर भगा दें। मैं आपसे थोड़ी दूरी पर अकेला चलूँगा, जिससे मुझ पर चोरों की दृष्टि नहीं पड़े। आप कोई भी मुझे आवाज नहीं देवें।'
इस प्रकार उन अन्धों को समझा कर वह ठग, धन लेकर चलता बना और वे अन्धे इधर-उधर चक्कर काटते रहे। उधर से कोई नागरिक सज्जन निकला। उसने अन्ध-समुदाय को इधर-उधर भटकते देखकर पूछा-'सूरदासजी ! आप सब सीधे मार्ग क्यों नहीं चलते, उन्मार्ग क्यों भटक रहे हो?' बस, सज्जन पर पत्थर वर्षा होने लगी। पत्थर वर्षा से उस सज्जन का भी सिर फूटा और अन्धों के भी सिर फूटे । जब तक झोलियों में पत्थर रहे, वे अन्धे आपस में ही एक दूसरे पर चोट कर घायल होते रहे
और भूमि पर गिर-गिर कर समाप्त होगए। एक चालाक ठग ने बहुत से अन्धों का धन, बडी चतुराई से लूटा और उनके जीवन को ही समाप्त कर दिया। इसी प्रकार आकर्षक एवं मोहक रूप में उपस्थित होने वाला मिथ्यात्व सम्यक्त्व रूपी धर्म-रत्न को जीव हृत्प्रदेश में घुस कर हर लेता है और मिथ्यात्व का मीठा विष भर देता है, जिससे वह मोक्षमार्ग से च्युत होकर संसाररूपी अटवी में भटकता रहे, जन्म-मरण करता रहे। मोहक मिथ्यात्व से बचना बड़ा कठिन है। जो तत्त्वार्थ को भली प्रकार से जानता है, जिसकी जिन वचनों पर दृढ़ श्रद्धान है, वे ही सुज्ञ मिथ्यात्व से बच सकते हैं। हमें भी अपने सम्यक्त्व रत्न की रक्षा करनी चाहिए।
('शिविर व्याख्यान' से साभार) सम्यग्दर्शन : दो भाव बिम्ब
डॉ. संजीव प्रचंडिया सोमेन्द्र' एक
दो निश्चित ही
आचार्य उमास्वाति का दर्शन सम्यगदर्शन प्राथमिक है मोक्ष की त्रिवेणी दर्शाता हैऔर आचरण उसका परिणाम “तत्त्वार्थ श्रद्धानं सम्यग्दर्शनं" सत्य का सद्दर्शन
का मूल पाठ बताता है। फैल जाता है जब
किंकर्तव्यविमूढ़ न हो जाएं हम तब साधना का अमर शिल्प इसीलिए श्रद्धान को बन जाता है निष्काम। पग-पग में जगाता है।
-मंगलकलश, ३९४ सर्वोदय नगर, आगरा रोड़ अलीगढ़-२०२००१
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