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सम्यग्दर्शन: विविध पुत्र-प्राप्ति के लिए पूजा करना मिथ्यात्व नहीं है। अरहन्त प्रतिमाओं की मनौती करने का समर्थन करते हुए एक अन्य बन्धु ने यह भी लिखा है कि साधारण व्यक्ति जो कुछ भी करता है वह किसी आकांक्षा की पूर्ति के लिए ही करता है। अतः जिस प्रकार कड़वी दवा की गोली को शक्कर में लपेट कर देते हैं उसी प्रकार हमें भी धर्म से सांसारिक कामनाओं की पूर्ति का प्रलोभन तो रखना ही पड़ेगा।
यहां प्रश्न यह है कि क्या और कोई भी प्रयल न पुरुषार्थ किये बिना केवल अरहन्त प्रतिमाओं की पूजा या मनौतियाँ करने से ही दरिद्रता मिट जाती है, पुत्र आदि की कामनाएँ पूरी हो जाती हैं ? ऐसा कोई भी नहीं कह सकता; परन्तु जो पूजा मनौतियाँ नहीं करते उन्हें समुचित प्रयत्न व पुरुषार्थ करने पर, असाता कर्म का तीव उदय नहीं हुआ तो धन, पुत्र आदि की प्राप्ति होती है। कारण यह है कि धर्म-सेवन से, पूजा करने से शुभ भाव होते हैं और केवल उससे ही निराकुलता पैदा होकर, असाता कर्म का उदय हो तो भी शांति तो मिलती है, परन्तु जैसा कि ऊपर कहा गया है, धन, पुत्र आदि की सांसारिक कामनाएँ पूरी हो जावें यह असंभव है। अतः धर्म से सांसारिक कामनाओं की पूर्ति के झूठे प्रलोभन को दवा की गोली के ऊपर लिपटी शक्कर के समान कहना मिथ्यात्व का ही प्रचार करना है, क्योंकि वह शक्कर के समान मीठी वस्तु तो दवा के विरोधी गुण वाली है, जो दवा का प्रभाव ही नहीं होने देती। भगवान महावीर ने तो ईश्वरवाद के विरुद्ध क्रांति करके हममें यह श्रद्धा तथा पुरुषार्थ जगाने का प्रयत्न किया था कि हमारी आत्मा में ही अनन्त शक्ति है, और उसे जगाकर हम स्वयं ही अपने कर्मों को नष्ट कर सकते हैं, कोई भी बाहरी शक्ति उन्हें नष्ट नहीं कर सकती। परन्तु उपर्युक्त मान्यता तो महावीर द्वारा दी गई दवा से विरोधी गुण वाली मीठी शक्कर है। इस झूठी मान्यता के कारण हमारे दैनिक पूजा-पाठ आदि भी भगवान से मांगने तथा पाप माफ करने की भावना से आप्लावित हो गये हैं
और हमारी आत्मा के पुरुषार्थ को जगने नहीं दे रहे हैं । ___ अस्तु, जिस वैज्ञानिक धर्म ने ईश्वर को भी नहीं माना उसमें ईश्वरवादी धर्मों के समान पद्मावती आदि शासन देव-देवियों की भी कल्पना कर लेनी पड़ी है। उसके परिणामस्वरूप जब अरहन्त प्रतिमाओं की पूजा व मनौती से सांसारिक कामनाएँ पूरी नहीं होती तो लोग शासन देवताओं की शरण में चले जाते हैं और जब उनसे भी मनौतियाँ पूरी नहीं होती तो अन्य धर्मों के देवी देवताओं की शरण में चले जाते हैं। शासन देवों का अस्तित्व ही नहीं कथित शासन देवी-देवताओं के समर्थन में कहा जाता है कि वे जैन शासन के रक्षक हैं तथा धर्म और धर्मात्माओं पर आने वाले विघ्न व संकट को दूर करने को सदा तत्पर रहते हैं। इनके समर्थक विद्वान् अपनी मान्यता के समर्थन में समय-समय पर अपने लेखों में पौराणिक कथाओं के उदाहरण देते रहते हैं, यथा 'वीर' दि. १.१२.८१ में एक विद्वान् बन्धु ने मेरे लेखों की आलोचना करते हुए, आचार्य अकलंक देव द्वारा तारादेवी को शास्त्रार्थ से भगाना, स्वामी समन्तभद्र द्वारा शिवपिंडी से भ. चन्द्रप्रमु की मूर्ति का प्रगटन, मुनिमानतुंग द्वारा ४८ ताले तोड़ना, चारण ऋद्धिधारी मुनियों द्वारा आकाश गमन आदि के उदाहरण देकर पद्मावती, चक्रेश्वरी, ज्वालामालिनी आदि देवियों की सहायता से ही
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